Book Title: Gyansuryodaya Natak
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 80
________________ ज्ञानसूर्योदय नाटक । जघन जंत्र मलमूत्र झरनको, चरनथंभ तिहिके आधार । घृणित अपावन कामिनि-तनयों, ज्ञानीलखहिंन यामें सार।। ___ जो लोग मूर्ख होते है, वे ही ऐसी नारीको देखकर उन्मत्त होते __ है, तथा स्नेह करते है । विष्टामें कौओंकी ही उत्कट अभिलाषा' ___ होती है, हस पक्षियोंकी नहीं । इस प्रकारके विचारवाणसे शील सामन्तने कामदेवको धराशायी कर दिया। वाग्देवी--पश्चात् क्या हुआ ? न्याय-भगवती! शीलसुभटके द्वारा कामके मारे जानेपर आकाशसे देवांगनाओने जयजयकार करते हुए फूलोकी वर्षा की । वाग्देवी-अच्छा हुआ! बहुत अच्छा हुआ! यह एक बड़ा भारी सुभट जीता गया। न्याय-कामकी मृत्यु सुनकर मोहका मुख मलीन हो गया। क्षणैक स्थिर रहनेके पश्चात् उसने अपने क्रोधनामक प्रसिद्ध योद्धाको रणभूमिमें भेजा । सो वह भी अपनी इच्छानुसार कृत्य करनेवाली हिंसा भार्याको लेकर दयाधर्मको दूर करता हुआ भयानक रूपमें आ खड़ा हुआ । उसको देखकर प्रवोध महाराज तकको चिन्ता हो गई । इतनेहीमें आपकी भेजी हुई क्षमाको देखकर प्रबोधने कहा, "प्यारी क्षमा! हमने क्रोधके साथ युद्ध करनेके लिये तुम्हें ही चुना है । इसलिये उसको जीतनेके लिये तुम, शीघ्र ही जाओ।" यह सुनकर क्षमाने कहा, "खामिन् मै खयं तो कुछ शक्ति नहीं रखती हूं, परन्तु आपके अनुग्रहसे आशा करती हूं कि, क्रोधको अवश्य ही पराजित करूंगी। आपके प्रभावसे १ जघन-योनिभाग।

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