________________ स्वभावसुखमग्नस्य, जगत्तत्त्वावलोकिनः। कर्तृत्वं नान्यभावानां, साक्षित्वमवशिष्यते॥३॥ जाना जगत के सर्व तत्त्वों को बने निज में मगन / निज सहज आनंद में मगन है एक चेतन की लगन // वे योगिराज विमुक्त बन जाते हैं कर्ता भाव से। सब जानते सब देखते हैं मात्र द्रष्टा भाव से // 3 // सहज स्वभाव के आनंद में मग्न तथा जगत् के स्वरूप का यथार्थ द्रष्टा आत्मा को अन्य पदार्थों का कर्ता भाव नहीं रहता, मात्र साक्षी-भाव रहता है। The all knowing 'Yogi' completely absorbed in inner bliss is devoid of subjectivity. He observes the world with the detachment of the uninolved onlooker. {11}