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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् अर्थ-वर्गों में शृंगाररसकी भूमि ऐसी गीत व बाजेकी विद्याओंमें तथा आलिंगनादि समस्त क्रियाओंमें स्त्रियोंकी खभावसेही प्रवीणता होती है ॥ ११४ ॥
सर्वावयवसम्पूर्णा दिव्यलक्षणलक्षिताः । अनङ्गप्रतिमा धीराः प्रसन्नप्रांशुविग्रहाः ॥११५ ॥ हारकुण्डलकेयूरकिरीटाङ्गदभूषिताः। मन्दारमालतीगन्धा अणिमादिगुणान्विताः ॥ ११६॥ प्रसन्नामलपुर्णेन्दुकान्ताः कान्ताजनप्रियाः। शक्तित्रयगुणोपेताः सत्त्वशीलावलम्बिनः ॥ ११७ ॥ विज्ञानविनयोद्दामप्रीतिप्रसरसंभृताः।
निसर्गसुभगाः सर्वे भवन्ति त्रिदिवौकसः ॥ ११८ ॥ अर्थ-उन ख!में देव कैसे हैं कि-शरीरके समस्त अवयव जिनके सम्पूर्ण सुडौल हैं, दिव्य मनोहर लक्षणोसहित हैं, कामदेवके समान सुन्दर हैं, धीर हैं (क्षोभरहित हैं), प्रसन्न वा विस्तीर्ण है शरीर जिनका ऐसे हैं, ॥ ११५ ॥ तथा हार कुंडल केयूर-(भुजबन्ध) किरीट-(मुकुट) अंगद (कटक आदि) इन आभूषणोंसे भूषित हैं, मन्दार मालतीके पुष्पोंकी समान जिनके अंगमें सुगन्धि है. अणिमा महिमादि अष्टऋद्धिसहित हैं ॥ ११६ ॥ प्रसन्न निर्मल पूर्ण चन्द्रमासमान मनोहर हैं, और कान्ताजन कहिये स्त्रियोंको अतिशय प्रिय लगनेवाले हैं, तीन शक्ति कहिये प्रभुत्व, मन्त्र, उत्साह इन गुणोंसहित हैं, तथा सत्त्व, पराक्रम और शील कहिये सुखमावके अवलम्बन करनेवाले हैं ॥ ११७ ॥ तथा विज्ञान, प्रवीणता और विनय वा उत्तम प्रीतिके प्रसर कहिये वेगसे भरे हैं, (खर्गमें समस्त देव इसीप्रकार स्वभावसे सुन्दर होते हैं) ॥ ११८ ॥
न तत्र दु:खितो दीनो वृद्धो रोगी गुणच्युतः ।
विकलाङ्गो गतश्रीकः स्वर्गलोके विलोक्यते ॥ ११९ ॥ __ अर्थ-तथा उस खर्गमें कोई ऐसा नहीं देखा जाता जो दुःखी, दीन, वृद्ध, वा गुणरहित, विकल–अंग अथवा कान्तिहीन हो ॥ ११९ ॥
सभ्यसामानिकामात्यलोकपालप्रकीर्णकाः।
मित्रायभिमतस्तेषां पार्श्ववर्ती परिग्रहः ।। १२०॥ अर्थ-खर्गों में समाके देव, सामानिकदेव, अमात्यादिकदेव, लोकपालदेव, प्रकीर्णकदेव ये भेद हैं. तथा मित्र आदिक सबही उन इन्द्रोंके पार्श्ववर्ती परिवार उनके अभिमत (इष्ट प्रीति करनेवाले) हैं ॥ १२०॥
बन्दिगायनसैरन्ध्रीखाङ्गरक्षाः पदातयः। नटवेत्रिविलासिन्यः सुराणां सेवको जनः ॥ १२१ ॥