Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 53
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। ॥चौपाई॥ नमोकार रघुवर तिहि दीना | चौथे स्वर्ग देव पद लीना ॥ अब लक्ष्मण परिदल क्षय कीना सिंहकरै ज्योंमृगगण क्षीणा ॥ ॥दोहा॥ चन्द्रोदय नृप का तनुज नाम विराधित तास । जड़त भयो रिपु सेनसे आय लक्ष्मण पास ॥ तब लक्ष्मण ने खरदूपण को मार क्षणक में गिराया । विसका वर्णन मुनो जैसा लिन आगम में गाया ॥ अरिंगण हत लक्षपण भय पाकर रामचन्द्रकेवट आये। लोटत भूपर सिया विन रामचन्द्र विकल पाये ।। तब लक्ष्मण ने विनय सहित धीरज बंधायक समझाये। खोज सिया का करेंगे कार्य चले ना घबराये ।। ॥चौपाई॥ भूप विराधत भी तर भाया । राम लक्षण के पद शिरनाया । नपण कही मुनो रघुराया। या नृप ने अति हेतु जनाया ॥ .दोहा॥ भयो सहाई रण विप नाशन को अरि पक्ष । या प्रसाद हम जयलही कहे वचन यों दक्ष ॥ भये परस्पर मित्र चिराधत ने रघुवर को समझाया । तिसका वर्णन सुनो जैसा जिन भागम में गाया ।। ७ घलिये प्रभु पाताल लंक में वहां नहीं रिपु गणकाडर । यहां सतह शत्रु बहु रावण आदिक महा जवर ।। सर दूपण का साला रावण ता सेवक बहु विद्याधर । तुम खरदूपण इवा सो पैर लोगे सब आकर ॥ ॥चौपाई॥ तब यह बात सभी मन आई। लक्ष्मण सहित गये रघुराई ।।

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