Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 140 ज्ञानानन्द श्रावकाचार किये उपकार को भूलने वाले संसार में तीन प्रकार के महापापी हैं - (1) स्वामी-द्रोही (2) गुरु-द्रोही (3) अपने से गुणों में अधिक गुणों वाले गुरु अथवा अन्य के होने पर भी शिष्य जो धर्मोपदेश दे / यदि देता है तो शिष्य दण्ड का पात्र है / अपने से गुणों में अधिक हों वे बडे पुरुष उपदेश दें / यदि वे गुरु (उस समय न बोलना चाहें तो उनकी आज्ञा होने पर) उनके वचनों का पोषण करने रूप वचन बोले तथा यदि गुरु से प्राप्त उपदेश में कुछ शंका हो तो भी गुरु के वचन के पोषण रूप वचन ही कहे / विनय सहित प्रश्न कर उसका उत्तर सुनकर निःशल्य होकर चुप होकर बैठा रहे / गुरु से बार-बार वचनालाप न करे / / ___ गुरु के अभिप्राय के अनुसार एवं गुरु के सन्मुख देखने पर प्रश्न करने रूप वचन बोले / ऐसा नहीं कि गुरु से पहले ही अन्यों को उपदेश देने लग जावे / गुरु से पहले ही उपदेश का अधिकारी होना वह तीव्र कषाय का लक्षण है / इसमें मान कषाय की मुख्यता है, अन्तरंग में ऐसा अभिप्राय वर्तता है कि मैं भी विशेष ज्ञानवान हूं / अतः उत्तम शिष्य हो वह तो पहले अपने अवगुण दूर करे, स्वयं की बार बार निंदा करे, विशेष प्रायश्चित करे, हाय ! मेरा क्या होगा ? मैं तीव्र कषाय से कब छूटूंगा, कब निर्वृत होऊंगा? अपने को सदा छोटा ही माने, फिर भी यदि कभी अवसर आ जावे, आप जिनधर्म में रुचिवान होकर उसके (जिनधर्म के) हितनिमित्त के लिये उपदेश दे सभा को अपनी बात कहे तो दोष नहीं है / ___ तन सुन्दर हो, पुण्यवान हो, कंठ स्पष्ट तथा वचन सिद्ध हो / आजीविका की आकुलता से रहित हो / गुरुओं के चरण कमलों में भ्रमर के समान तल्लीन हो। साधर्मी जनों की संगत में रहता हो तथा उसका कुटुम्ब साधर्मी ही लोगों का हो / नेत्र तीक्ष्ण हो, कसौटी के पाषाण, दर्पण, अग्नि वत सिद्धान्त रीप रत्न की परख करने का अधिकारी हो / सुनने का इच्छावान होना, श्रवण, ग्रहण, धारण, प्रश्न, उत्तर, निश्चय - ये आठ गुण श्रोता में और होने चाहिये।