Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Moolchand Manager
Publisher: Sadbodh Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ प्रस्तावना । सजमो, जिस ग्रन्थकी हम प्रस्तावना लिखनेका आरंभ करते हैं वह वास्तव में बहुत ही महत्वका है । ग्रन्थकर्ताने इस ग्रन्थकी रचना कर जैनजातिका बड़ा भारी उपकार किया है। इस ग्रन्थके रचियता श्रीयुत विर्य पं० रायमल्छनी सा० जयपुरनिवासी हैं। आपके विषय में बहुत कुछ लिखने की हमारी इच्छा थी परन्तु जैन समाज ऐतिहासिक विषयों में सबसे पीछे पड़ा हुआ है इसी कारण आज कोई किसी आचर्य, विद्वानकी जीवनी लिखना चाहे तो पहले तो उसे सामग्री ही नहीं मिलती; यदि कुछ सामग्री भी मिल गई तो पूरी न मिलनेके कारण पाठकों को संतोष नहीं होता । ऐतिहासिक विषयोंकी खोज करनेके लिये जिस शिक्षाकी आवश्यकता है हमारे समाजमें सच पूछो तो उसका प्रारम्भ ही नहीं हुआ है । प्रन्थकर्ताकी जीवनीका मैने बहुत खोज किया, कई ग्रन्थ देखे, कई जगह ढूंढ़ खोज की किन्तु दुःखका विषय है कि ऐसे महत्वपूर्ण ग्रन्थके रचयिता विद्वानका केवल नाम और ग्राम विदित होनेके सिवाय और कुछ पता न लगा । इतना भी परिचय श्रीयुतं मास्टर दरयावसिंहजी सोधिया इन्दौर निवासीद्वारा प्राप्त हुआ । यह ग्रन्थ (ज्ञानानंद श्रावका - चार जैनियोंका आचार प्रधान ग्रन्थ है इस ग्रन्थकी एक २ प्रति वर्तमान समय में प्रत्येक जैनीके हाथमें होना आवश्यक है, /

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 306