Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij

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Page 86
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुं अन्य पंथे परवņने, आप पण बीजे गया; पण पूर्वना परिबल वडे, संबंधी थइ भेगा थया. मम० ||४|| म्हारी अने गुरु आपनी, थइ भूमिकामां एकता; म्हारी अने गुरु आपनी, थइ जातिमांही एकता. मम० ॥५॥ उत्तर अने बळी मध्यनी, आजे बनी गइ एकता; आचार वृत्ति विचारमां, गुरु आज थइ गड़ एकता. मम०॥६॥ आ दैवनी कृति एकतानी, भिन्नता केमज बनेः अद्वैत - मांहि एकतानी, द्वैतता क्यांथी बने. जे नगरमा सुतो हतो, त्यां मृत्यु घंटा गाजती; घनश्याम सूना आश्रमे, शय्या अमे कीधी हती. मम०॥८॥ त्यां एकदम आवी तमे, आज्ञा सुखद आपी दीधी: जाग्रत मधुर आवी अने, निद्रा दुःखावह दूर कीधो. मम०||९|| मम० ||७|| म्हारा सुना मंदिर विषे, भरपूर वस्ती आपनी: म्हारा मृदुल मंदिर विषे, मृदुभक्ति शस्ती आपनी. मम० ॥ १०॥ म्हारा सुभग आश्रम विषे, शुभमूर्त्ति हसती आपनी; विसराय ना ने जायना रसता हती ते आपनी मम०॥११॥ For Private And Personal Use Only आ दैवकृत संयोगनो, उपयोग पण पूरण थयो; घनरात्रि आज हठावी भासुर, उदय पण पूरण थयो.. मम० ||१२||

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