Book Title: Guru Vani Part 03
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 271
________________ ज्ञान-पञ्चमी कार्तिक सुदि५ अज्ञानता से भटकती आत्मा अनादि काल से आत्मा संसार में भटक रही है। अनन्त काल के कचरों से उसका स्वरूप आच्छादित हो गया है। कॉलेज की पुस्तकें पढ़ने मात्र से यह कचरा दूर नहीं होगा। सम्यक् ज्ञान रूपी प्रकाश जब फैलता है, तब ही ज्ञान होता है। काम, क्रोध, मान, माया, आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रह संज्ञा कैसी और कितनी है। जब तक इस कूड़ेकरकट को दूर नहीं करेंगे तब तक सच्चिदानन्द स्वरूप आत्मा को हम नहीं पहचान सकेंगे। कचरे का ढेर लग गया हो और उसको निकालतेनिकालते थक भी गये हों किन्तु निकालने की शुरुआत करेंगे तो थोड़ा बहुत भी निकलेगा ही न! कचरा है, इसका ज्ञान होने पर ही तो निकालने की प्रक्रिया प्रारम्भ होगी। कोई मकान कई वर्षों से बन्द पड़ा है। उसको साफ करना है? क्या करना चाहिए? घोर अंधेरे में उसको साफ किया जा सकता है क्या? अंधेरे में क्या दिखाई देगा? प्रकाश चाहिए न! प्रकाश बिना अच्छी तरह सफाई नहीं हो सकती। अंधेरे को दूर करता हुआ कुटुम्ब एक अज्ञानी परिवार है । स्वाभाविक रूप से रात्रि के समय घर में अंधेरा छा जाता है। वह कुटुम्ब ऐसा मानता था कि हमारे यहाँ आकर कोई अंधेरा छोड़ जाता है। क्या करना? यह अंधेरा कैसे दूर हो? संध्या के समय घर के समस्त सदस्य इकट्ठे होकर झाड़ और टोकरा लेकर उसके पीछे पड़ गए.... अंधेरे को दूर करने के लिए।

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