Book Title: Gunsthan Prakaran
Author(s): Fulchand Shastri, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 25
________________ मिथ्यात्व ४८ गुणस्थान-प्रकरण वह इसप्रकार है - एक क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ संयत जीव सयोगिकेवली हो, अन्तर्मुहूर्त काल रह, समुद्घात कर, पीछे योगनिरोध करके अयोगिकेवली हुआ। इसप्रकार सयोगिजिन के जघन्य काल की प्ररूपणा एक जीव के आश्रय करके कही गई। सत्र - एक जीव की अपेक्षा सयोगिकेवली का उत्कृष्टकाल कुछ कम पूर्वकोटि है||२२|| वह इसप्रकार है - एक क्षायिकसम्यग्दृष्टि देव अथवा नारकी जीव पूर्वकोटि की आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। सात मास गर्भ में रह करके गर्भ में प्रवेश करनेवाले जन्मदिन से आठ वर्ष का हुआ। (८) आठ वर्ष का होने पर (१) अप्रमत्तभाव से संयम को प्राप्त हुआ। पुनः प्रमत्त और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान सम्बन्धी सहस्रों परिवर्तनों को करके, (२) अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में अधःप्रवृत्तकरण को करके, (३) क्रमशः अपूर्वकरण, (४) अनिवृत्तिकरण, (५) सूक्ष्मसाम्परायक्षपक,(६) और क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ होकर, (७) सयोगिकेवली हुआ। पुनः वहाँ पर उक्त आठ वर्ष और सात अन्तर्मुहूर्तों से कम पूर्वकोटि कालप्रमाण विहार करके अयोगिकेवली हुआ। इसप्रकार आठ वर्ष और आठ अन्तर्मुहूर्तों से कम पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण सयोगिकेवली का काल होता है। (इसप्रकार ओघ प्ररूपणा समाप्त हुई) आगे चौदह गुणस्थानों का नक्शों के माध्यम से गमनागमन का ज्ञान कराया है और वहाँ ही गोम्मटसार जीवकाण्ड में आये हुए महत्त्वपूर्ण विषय की जानकारी भी दी है। पाठक उसका लाभ लेवें। अन्त में १४ गुणस्थानों के जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट काल का भी कथन संक्षेप में किया है। मिथ्यात्व दर्शनमोहनीय मिथ्यात्व कर्म के उदय के समय में अर्थात् निमित्त से होनेवाले जीव के तत्त्वार्थों के विपरीत श्रद्धानरूप भाव को मिथ्यात्व गुणस्थान कहते हैं। उसके पाँच भेद हैं। __ प्रथम गुणस्थान में औदयिक भाव होते हैं, और द्वितीय गुणस्थान में पारिणामिकभाव होते हैं। मिश्र में क्षायोपशमिकभाव होते हैं। और चतुर्थगुणस्थान में औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक इसप्रकार तीनों ही भाव होते हैं। त्रिकाली निज शुद्धात्मा के निर्विकल्परूप ध्यान से मिथ्यात्व का नाश होता है और मोक्षमार्ग प्रगट होता है । इस कार्य के लिए अध:करणादि तीनों करण परिणाम आवश्यक रहते हैं। ७ अप्रमत्तविरत में) ६ प्रमत्तविरत से ५ देशविरत में |५देशविरत से अविरत सम्यक्त्व में) (३ मिश्र में ४ अविरत सम्यक्त्व से २मिश्रसे मिथ्यात्व में पाँच गुणस्थानों से आगमन । क्षायिक सम्यक्त्वी को छोड़कर मिथ्यात्व से चार गुणस्थानों में गमन द्रव्यलिंगी मुनिराज, द्रव्यलिंगी श्रावक)/ द्रव्यलिंगी मुनिराज) ॐ द्रव्यलिंगी मुनिराज, द्रव्यलिंगी) श्रावक, भद्रमिथ्यादृष्टि सादि मिथ्यादृष्टि) २सासादन से मिथ्यात्व गमन मिथ्यात्व में आगमन 25

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