Book Title: Granth Pariksha Part 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 73
________________ (६५) क्षत्रियासूतकं पंच विप्राणां दश उच्यते । वैश्यानां द्वादशाहेन मासावितरे जने ॥ ३८॥ यतिः क्षणेन शुद्धः स्यात्पंच रात्रेण पार्थिवः। ब्राह्मणो दशरानेण मासार्धेनेतरो जनः ॥ ३९॥ इन तीनों पद्यों से कोई भी पद्य 'उक्तं च ' आदि रूपसे किसी दूसरे व्यक्तिका प्रगट नहीं किया गया और न दूसरा पद्य पहले प्राकृत पद्यकी छाया है । तो भी पहले पद्यमें जिस बात का वर्णन दिया है वही वर्णन दूसरे पद्यमें भी किया गया है । दोनों पद्योंमें क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और शूद्रोंकी सूतकशुद्धिकी मर्यादा क्रमशः पाँच, दस, वारह और पंद्रह दिनकी वतलाई है। रहा तीसरा पद्य, उसमें क्षत्रियों और ब्राह्मणोंकी शुद्धिका तो कथन वही है जो अपरके दोनों पद्योंमें दिया है और इसलिए यह कथन तीसरी वार आगया है, वाकी रही वैश्यों और शूद्रोंकी शुद्धिकी मर्यादा, वह इसमें १५ दिनकी बतलाई है, जिससे वैश्योंकी शुद्धिका कथन पहले दोनों पद्योंके कथनसे विरुद्ध पड़ता है। क्योंकि उनमें १२ दिनकी मर्यादा लिखी है। इसके सिवाय ग्रंथमें इन तीनों पद्योंका ग्रंथके पहले पिछले पद्योंके साथ कुछ सम्बंध ठीक नहीं बैठता और ये तीनों ही पद्य यहाँ 'उठाऊ चूल्हा' जैसे मालूम पड़ते हैं। (स) दूसरे खंडमें 'तिथि ' नामका २८ वाँ अध्याय है, जिसमें कुल तेरह पद्य हैं। इनमेंसे छह पद्य नं० ४, ५, ७, ८,९,१० बिलकुल वे ही हैं जो इससे पहले 'मुहूर्त' नामके २७ वें अध्यायमें क्रमशः नं० ९, १०, १७, १८, १९, २० पर दर्ज हैं। यहाँ पर उन्हें व्यर्थ ही दुबारा रक्खा गया है। (ग) दूसरे खंडमें 'विरोध ' नामका एक ४३ वाँ, अध्याय भी है जिसमें कुल ६३ श्लोक हैं । इन श्लोकोंमें शुरूके साढ़े तेईस श्लोकनं० २ से न० २५ के पूर्वार्ध तक-बिलकुल ज्योंके त्यों वे ही हैं जों

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