Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar Publisher: Parshwanath Vidyapith View full book textPage 7
________________ कथाओं में देश व समाज के विभिन्न पक्षों का चित्रण स्वाभाविक रूप से होता है, इस दृष्टि से यह तत्कालीन साहित्य व सांस्कृतिक विरासत का अपूर्व व उल्लेखनीय ग्रन्थ है। इसमें अभिव्यक्त इस धरोहर का विभिन्न अध्यायों व उनके शीर्षकों के अन्तर्गत अध्ययन किया गया है। यथा प्रथम अध्याय में आगम स्वरूप, आगम अर्थ, आगम व्युत्पत्ति, आगम वाचना, आगम भेद, विविध आगमों का परिचय आदि प्रस्तुत किया गया है। इसी क्रम में ज्ञाताधर्मकथा के सामान्य परिचय को भी साङ्केतिक किया गया है। द्वितीय अध्याय ज्ञाताधर्मकथांग के विस्तृत परिचय व नामकरण से सम्बन्धित है। इसमें ज्ञाताधर्मकथांग के रचनाकाल, तत्सम्बन्धी भिन्न-भिन्न मत, विभिन्न पाण्डुलिपियाँ, प्रकाशित कृतियाँ एवम् इससे सम्बन्धित व्याख्या साहित्य को प्रस्तुत किया गया है तथा इसका आलोचनात्मक दृष्टि से मूल्यांकन भी किया गया है। तृतीय अध्याय प्राकृत कथा-साहित्य, उसके उद्भव व विकास, कथा का अर्थ, कथा की परिभाषा, कथा की उपयोगिता, कथाओं का उद्भव एवं विकास तथा कथा के वर्गीकरण से सम्बन्धित है। ऐसा इस आगम के महत्त्व व उपयोगिता को प्रतिपादित करने के लिए किया गया है। चतुर्थ अध्याय में ज्ञाताधर्मकथांग की विषयवस्तु को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया गया है, परन्तु अध्ययनक्रम में यह आभास हुआ कि विषयवस्तु का विस्तार विवेचन ही प्रत्येक कथा के अन्तरंग एवं बाह्य साक्ष्यों को प्रस्तुत करने वाला है। अत: विषयवस्तु के समस्त प्रस्तुतीकरण को सरल एवं सुबोध रूप में दिया गया है। इस ग्रन्थ की प्रत्येक कथा को कथानक रूप में प्रस्तुत किया गया है एवं प्रत्येक कथा की विषयवस्तु के साथ अन्त में जो विशेषताएँ एवं निष्कर्ष दिये गये हैं वही कथा की मूल आत्मा है और वही जीवन का सन्देश भी है। पञ्चम अध्याय में कथा के तात्त्विक-विवेचन के क्रम में कथानक, कथोपकथन, चरित्र-चित्रण, शिल्पकला, देश-काल, वातावरण और उद्देश्य का वर्णन दिया गया है। इसमें कथा के मूलस्रोत को आधार बनाकर तथा विविध दृष्टान्तों, पात्रों के 'भावों, विचारों एवम् उनके चिन्तन को प्रस्तुत किया गया है। इस क्रम में कथा के विविध पक्षों को भी उनके साथ प्रस्तुत किया गया है। कथानक के मूल में अवान्तर कथाएँ किस रूप में मोड़ लेती हैं इस पर भी प्रकाश डाला गया है। चरित्र-चित्रण में नैतिक मूल्यों, सामाजिक विचारों आदि की प्रधानता से युक्त दृष्टि रखते हुए ऐतिहासिक, पौराणिक पात्र चित्रण भी दिया गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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