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ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 )
नहीं कहते थे ?' मैंने कहा, 'क्या कहना ?' तब उन्होंने कहा, 'क्या चोरी करना अच्छी बात है ?' मैंने कहा, 'वह चोरी नहीं करता था। खानदानी इंसान का बेटा चोरी नहीं करता' ।
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वह चोरी नहीं करता था । लोग उसे 'चोर' कह सकते हैं, लेकिन मैं 'चोर' नहीं कहूँगा। खानदानी इंसान का बेटा, चोरी कैसे कर सकता है? तब उन्होंने मुझसे पूछा, 'तो फिर वह क्या करता था?' मैंने कहा, 'माँगने की खानदानियत के बजाय लेने की खानदानियत अच्छी है'। वह माँग नहीं सकता था, हाथ नहीं फैला सकता था, खानदानी पुरुष था इसलिए...
प्रश्नकर्ता : हाँ, हाथ नहीं फैला सकते । माँगने की खानदानी नहीं पुसाती !
दादाश्री : तो इसलिए मुझे भी अच्छा लगता था । 'तू ले रहा है, वह ठीक है' ऐसा कहता था । 'तेरी खानदानियत ऐसी नहीं है कि तू माँगे। स्वाभाविक रूप से मैं समझता हूँ कि माँगना और मरना समान है ' भाई मुझे दस रुपए दीजिए' इस तरह माँग नहीं सकता था इसलिए निकाल दिए। भाई का लेने में गुनाह नहीं है, मामा का बेटा लगता है
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न!
प्रश्नकर्ता : हाँ, हाँ।
दादाश्री : चोर किसे कहते हैं ? दस नहीं लेता, साठ रुपए पूरे ही ले लेता है।
प्रश्नकर्ता : हाँ, चोर उसे कहते हैं कि जो पूरा ले जाए ।
दादाश्री : तीन सौ पड़े थे, फिर भी उसने पाँच ही लिए ।
प्रश्नकर्ता : हाँ, ज़रूरत लायक ही लिए ।
दादाश्री : मैं समझ भी जाता था कि यह ले गया । और फिर वह मेरे सामने देखता था कि " अभी कहेंगे, मुझे डाँटेंगे कि 'अरे, तूने आज हाथ डाला था न!" मैंने कहा, 'नहीं भाई, मैं नहीं कहूँगा'। और फिर