Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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तृतीयः प्रबन्धः त्यज मम देव नृप राजाधिप त्यज मम देव नृप ॥ १७॥ तव निकटे सुहिता वयमिति भावय शिवकुशले मतिमानय । त्यज मम देव नृप राजाधिप त्यज मम देव नृप ॥ ८ ॥ इति निजसचिवोक्तं पथ्यमाध्याय चित्ते सपदि तनयवये क्षिप्तसाम्राज्यभारः । सकलभुवनवन्द्यां प्राप्य सल्लेखना वै दिविजपललिताङ्गो ऽजायतैशानकल्पे ॥ ५ इति श्रीमदभिनवचारुकीर्तिपण्डिताचार्यवर्यस्य कृतौ गीत__ वीतरागे महाबलस्य वैराग्योत्पादनो नाम
द्वितीयः प्रबन्धः ॥२॥
[३] ईशाने निजनन्दने कुलगिरौ मेरौ च वक्षारके जम्बूशाल्मलिभूरुहाद्युपवने नन्दीश्वरे कुण्डले । इष्वाकारगिरौ स्वयम्भुरमणे जायासमेतः सदा क्रीडार्थ विजहार देवललिताङ्गो गीतगोष्ठयादिभिः ॥ १ सुललितचन्दनपल्लवसंगमकोमलकमलसमीरे
अलिकुलविमिलितकोकिलकूजितमेरुनिकुञ्जकुटीरे । १) AS वसंतरागे; B राग-वसंत भैरवि; M राग-वसन्त । २) BMS° विमलित ।
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