Book Title: Ek Prasiddh Vakta Ki Taskar Vrutti Ka Namuna
Author(s): Gunsundarsuri
Publisher: 

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Page 14
________________ इत्यादि अनेक स्थान मूलपाठ और अर्थको पलटा दीया है आखिर में श्रीपालजी राजऋद्धि लेके चम्पानगरी आये आनंद में राज भोगवते हुवे जो सुकृत कार्य किया जिस विषय मूल पाठमें एसा लिखा है ? प्राकृत-अठ्ठाहियाउ चेईहरेसु / कारावि ऊरण विहि पूव्वं / सिरि सिद्धचक्कं पूअंच / कारए परम भत्तीए // 1068 // ठाणे ठाणे चेईहराई, कारइं तुंग सिहराई . घोसावेई अमारिं दाणं दीणणं दावई // 1069 // - संस्कृत-तथा श्रीपाल चैत्यगृहेषु-जिनमन्दिरेषु अष्टाह्निका महोत्सवान् कारयित्वा विधिपूर्वक परमभक्त्या श्री सिद्धचक्रपूजां च कारयति / 1068 / स्थाने स्थाने तुङ्गानि उच्चानि शिखराणि येषां तानि तुङ्ग शिखराणि-चैत्य गृहाणि कारयति तथाऽमारि-सर्व जन्तुभ्योऽभयदानं पोषयति पुनः दीनेभ्योदानं दापयति इत्थं पुण्य कृत्यानि करोतीत्यर्थःरास-उत्सव चैत्य अठ्ठाइयारे लाल / विरचावेविधि साररे / सो० / सिद्धचक्रनी पूजा उदाररे / सो। करे जाणि तस उपकाररे। सो०। तेनुं धर्मी सहु परिवाररे / सो। धर्मे उल्लसे तस दाररे / सो। चैत्यकरावे तेहवारे / सो / जे स्वर्ग, मांडे वादरे / सो / अब ढूँढकजीकि चालाकबाजी को भी देखिये / निज देश हिंसा बन्ध कीनी / दीनो दान अनेक / देवगुरु धर्म शुद्ध समकितकी / राखी पुरी टेक हो / 634 / ___ गाथाका पूर्वार्द्ध में स्थान स्थान मन्दिर करवाया इसको तो उडादीया है ओर उत्तरार्द्ध में जो जीवहिंसा बन्ध करवाई ओर दान दीया था वह ले लिया, क्या यह तस्करवृत्ति नहीं है ? अगर

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