Book Title: Dwatrinshad Dwatrinshika
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Vijaylavanyasuri Granthmala
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________________ 12 वृद्धवादो हतुं के मार्य सुहस्ति के धर्माचार्य ? एमर्नु अपर नाम कुमुदचंद्र हतुं के नहीं अथवा ता एमना द्वारा थयेला चमत्कारोने वास्तविक गणवा के केम ! आ. सिद्धसेननी संस्कृत प्रत्येनी आसक्तिनुं कारण शुं ! शा माटे एमनी द्वात्रिंशिकाओनी अवगणना करवामां आवा ! आ० सिद्धसेन द्वारा करवामां आवेल महाकालना कुडंगेश्वरना मंदिरना चमत्कारो, विक्रमादित्य साथेनो तैमनो संबंध वगेरेमां तथ्य केटलं ? आ० सिद्धसेन ए ज क्षपणक हशे : बघा विवादास्पद मुद्दाओ एम ज रहेता होवा छतां 'एमना जीवन विशे माटलं स्वीकारी शकाय एम लागे छे। . आ० सिद्धसेन एमना आरंभना जीवनमां ब्राह्मण हता / उपलब्ध तमाम शास्त्रोमां निपुण हता अने संस्कृत भाषानो उपयोग करता / पछी ए जैनधर्ममां दोक्षित थया। विचारसणीनी आरूढता अने संस्कृत भाषा प्रत्येना पक्षगतने कारणे एमने प्रायश्चित्त अपायुं / एमने राजा विक्रमादित्य सम्मान्या अने एमणे जैनधर्मने गौरव अपाव्यु / एमणे 'सन्मतितर्क' अंने 'द्वात्रिंशत्द्वात्रिंशिकाओ'नो रचना करो। जैनोमां ए असाधारण प्रतिभा घरावनार कवि, -तत्त्ववेत्ता हता पण एमने योग्य आदर न मळयो, एटलं ज नहीं एमनी कृतिओनी महत्ता पण न अंकाई। आ० सिद्धसेन समर्थ वादो हता अने एमना स्वर्गवासथी न प्रो शकाय एको खोट पडी हती / समय आ० सिद्धसेननो समय घणो विवादास्पद रह्यो छे भने

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