Book Title: Dropadiswayamvaram
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 21
________________ [१७] श्रीपाल के कवित्व और महत्त्व की कल्पना इन प्रसंगों से आ सकेगी। जिस ने मात्र एक दिन जैसे अतिअल्प समय में महाप्रबन्ध की रचना कर डाली उस की कवित्वशक्ति की क्या कल्पना हो सकती है। इस महाकवि ने कितनी कृतिय की उस का पूरा पता नहीं और जिन का नाम निर्देश ऊपर हुआ है उन में से कितनी विद्यमान हैं यह भी ज्ञात नहीं। हमारे देखने में मात्र दो लघु कृतियें आई हैं जिन में एक तो जैनधर्म के २४ तीर्थंकरों की स्तवनारूप २९ पद्यों की यमकमय स्तुति है । इस स्तुति के अंत में यह आशीर्वाद है इति सुमनसः श्रीपालकविरचितनुतयः समस्तजिनपतयः __ अविनाशिज्ञानदृशो* दिशन्तु वः। इस स्तुति का आदि पद्य इस प्रकार है भक्त्या सर्वजिनश्रेणिरसंसारमहामया । स्तोतुमारभ्यते बद्धरसं सारमहामया ।। _दूसरी कृति, वडनगर-प्राकार-प्रशस्ति है जो प्राचीन लेखमाला में छपी है । इस के भी २९ ही पद्य हैं । गुजरात के डिनगर नामक महास्थान-प्राचीन नाम आनन्दपुर-के चारों उर्फ वि. सं. १२०८ में, सिद्धराज के उत्तराधिकारी नृपति कुमा... * विनश्वर चक्षु के विपाक का अनुभव करने वाला इस के सिवा और केस पदार्थ की बाञ्छा कर सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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