Book Title: Dravyapraman Prakaranam Evam Kshetrasparshana Prakaranam
Author(s): Jagacchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 13
________________ समर्पणम् र योऽस्ति श्रीप्रेमसूरीश-पट्टप्रद्योतको महान् । भुवनभानुसूरीशं, वन्दे सन्मार्गदं गुरुम् ॥१॥ यं श्रिता बोध-वैराग्य-तपस्त्यागादयो गुणाः । भुवनभानुसूरीशं वन्दे सन्मार्गदं गुरुम् ॥२॥ येन सद्देशनाभानु-भानुसंबोधिता वयम् । . भुवनभानुसूरीशं वन्दे . सन्मार्गदं गुरुम् ॥३॥ यस्मै सृष्टा कृपावृष्टि-गुरुभिर्गुणमूर्तये । भुवनभानुसूरीशं वन्दे सन्मार्गदं गुरुम् ॥४॥ यस्मात् सद्बोधदोद्भूता सूत्रार्थचित्रदर्शिका । भुवनभानुसूरीशं वन्दे सन्मार्गदं गुरुम् ॥५॥ यस्य शतद्वयासन्न-पद्मादियतिनां गणः ।। भुवनभानुसूरीशं वन्दे सन्मार्गदं गुरुम् ॥६॥ यस्मिन् परार्थता भव्या, करुणा चाऽप्रमत्तता । भुवनभानुसूरीशं वन्दे सन्मार्गदं गुरुम् ॥७॥ अष्टोत्तरशतौलीनां कारक ! जगदाधृते ! भो ! वन्दे तार्किकप्रष्ठ ! वर्धमानतपोनिधे ॥८॥ शतेन वा सहस्रेणा-ऽशक्या गुणस्तुतिस्तव । अतः समर्प्य सत्शास्त्रं स्वात्मानं तोषयाम्यहम् ॥९॥ गुरुपदकजभृङ्ग स्व. अनुयोगचार्यश्रीपद्मविजयशिष्याणु आचार्य विजय जगच्चन्द्रसूरिः

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