Book Title: Dravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Author(s): Thakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan

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Page 47
________________ द्रव्यपरीक्षा देवगिरी हेमच्छ सवादसी सिंघणी महादेवी । ठाकर लोहकुंडी अट्ठी वाणकर पउणदसी ।। ५९ ।। खग्गधर चुक्खरामा सड्डूनवी केसरो य छह सड्डा | सत्त जब दसी वनी कउलादेवो वियाणाहि ॥६०॥ जे अनि प्रच्छु बहुविह यरेहि तह मुल्लु तुल्लु नज्जेइ । चउमासा दीनारो जहिच्छ वन्नी णुसारि फलो (१) ॥ ६१ ॥ ॥ इति स्वर्णमुद्रा ॥ वाणासीय मुद्दा पउमा नामेण इक्कि सय मज्झे । तिन्नेव घाउ तुल्ले तोला सइतीस जाणेह ||६२ || (३) बालू देवगिरी मुद्रा स्वर्णमय वानी विउराप्रमाणे १०। सिंघण १०। महादेवी ८ ठाणाकर ८ लोहकुंडी ९|| रामबाण ९॥ खङ्गधर ६ ॥ केसरी बोलीराम १० ज ७ कौल देवी • दीनारु मा० ४ Po ५९-६०. देवगिरि की आछू स्वर्णमुद्राएं सोंघण और महादेवी सवा दस बान की ठाणकर और लोहकुंडी आठवान की, वाणकर (रामवाण) पौने दस बान की, चोखी राम (लघर) साढ़े नौ बान की, केसरी साड़े छः बान की, कौलादेवी दस वान सात जवान के सोने की जानना । ६१. अन्य भी बहुत प्रकार के स्तर की जिनका मोल तोल अज्ञात हो व चार मासे वाली दीनार में सोने की बान के अनुसार यथेच्छ फल जानना । स्वर्ण मुद्राएँ समाप्त हुई। ६२. पद्मा नामक वाराणसीमुद्रा में तौल में तीनों पातु मिले हुए है और सो मुद्राएँ तीस तोला ( अर्थात् १११ टॉक) है। १. केसरी मुद्रा का उल्लेख हेमचन्द्रकृत द्वाश्रय काव्य में आया है । Aho! Shrutgyanam

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