Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 304
________________ श्रावक के चार प्रकार २६३ सइ एयंमि गुणोहे संजायइ भावसावगत्तं पि, । तस्स पुण लक्खणाई एयाई भणंति सुहगुरुणी ॥३२॥ भावभावकत्व भी ये गुणसमूह होवें तभी प्राप्त होता है। उसके लक्षण शुभगुरु इस प्रकार कहते हैं । भावयतित्व तो दूर रहा परन्तु भावश्रावकत्व भी उक्त अनंतर गुणसमूह के होने पर याने विद्यमान हो तभी संभव है। शंका-क्या श्रावकत्व अन्य प्रकार से भी होता है कि जिससे ऐसा कहते हो कि भावभावकत्व १ । उत्तर-हां यहां जिनागम में सकल पदार्थ चार प्रकार के ही हैं । कहा है कि "नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव से प्रत्येक पदार्थ का न्यास होता है। यथा-नामश्रावक याने किसी भी सचेतन अचेतन पदार्थ का श्रावक नाम रखना सो.। स्थापनाश्रावक चित्र या पुस्तक में रहता है । द्रव्यश्रावक ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त माने तो जो देव गुरु को श्रद्धा से रहित हो सो अथवा आजीविकार्थ श्रावक का आकार धारण करने वाला हो सो। .. भावश्रावक तो-"श्रा याने जो श्रद्धालुत्व रखे व शास्त्र सुने । व याने पात्र में दान करे वा दर्शन को अपनावे । क याने पाप काटे व संयम करे उसे विचक्षण जन श्रावक कहते हैं ।" इत्यादि श्रावक शब्द के अर्थ को धारण करने वाला और विधि के अनुसार श्रावकोचित व्यापार में तत्पर रहने वाला इसी ग्रन्थ में जिसका आगे वर्णन किया जावेगा सो होता है व उसी का यहां अधिकार है। शेष तीन तो ऐसे वैसे ही हैं (सारांश कि यहां काम के नहीं)।

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