Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
धर्मपरी०
॥ १६४ ॥
तोपण ए फल सांजली, पामी ढुं वैराग लालरे ॥ प्रिय पूर्वी करी पारं, व्रत लेशुं धरी राग लालरे ॥ सा० ॥ १७ ॥ महीमा दीठो धरमनो, एणे सघले साक्षात् लालरे ॥ तोपण जोग तजे नहीं, तेणे जूठी कहुं वात लालरे ॥ सा० ॥ २० ॥ आठमा खंग तणी कही, अग्यारमी ढाल रसाल लालरे ॥ रंगविजय शिष्य एम नणे, नेमविजय उजमाल लालरे ॥ सा० ॥ २१ ॥
डदा.
जो ए संयम आदरे, तो सघलुं कहुं सत्य ॥ नूपादिक सहको कहे, अहो श्रहो ताही मत्य ॥ १ ॥ व्रत सेवा मुंज मन हतुं, पड्यो जोगने पास || दीक्षा लेशुं हवे श्रमे, एम जंपे अईदास ॥ २ ॥ जोजन नक्ति करी जली, नृप संप्रेड्यो धाम ॥ श्राव दिवस व करी, धन खरच्युं शुभ गम ॥ ३ ॥ सद्गुरु पासे संयम लीयो, याव नारीशुं यदास ॥ तप जप कर्म खपावीने, कीधो शिवपुर वास ॥ ४ ॥ सुहस्ती सूरि |देशन सुणी, संप्रति नाम नरेश ॥ जिनवर धर्म विशेषथी, वरतावे निज देश ॥ ५ ॥ धरम करो जवियण सदा, धरमे जावत जाय ॥धरमे मनवंबित फले, वसे शिवपुर मांय ॥ ६ ॥ जिन प्रासाद करावीयां, दीघां बहु परे दान ॥ जनम सफल करी श्रापणो,
खंग
॥ १६४ ॥

Page Navigation
1 ... 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342