Book Title: Dhammapada 12
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 322
________________ एस धम्मो सनंतनो तुमने पूछा : ' मोह क्या है ?" मोह है ठहरने की वृत्ति। जहां कुछ भी नहीं ठहरता, वहां सब ठहरा हुआ रहे — ऐसी भावदशा, ऐसी भ्रांति। इससे दुख पैदा होगा। तुम खुद ही दुख पैदा कर रहे हो। फिर इस दुख से, तुम कहते हो कि छूटना कैसे हो ? यह छूटता भी नहीं । यह छूटता इसलिए नहीं कि इसको छोड़ो, तो तुम एकदम खाली हो जाते हो । फिर तुम क्या हो ! दुख की कथा हो तुम। दुख का अंबार हो तुम। दुख ही दुख जमे हैं। इन सबको छोड़ दो, तो शून्य हो गए। शून्य से घबड़ाहट लगती है । कि चलो, कुछ नहीं, सिरदर्द तो है ! चलो, कुछ नहीं, कोई तकलीफ तो है, कोई तकलीफ से भरे तो हैं। कुछ उलझाव, कुछ व्यस्तता बनी है। तो आदमी इसलिए दुख नहीं छोड़ता । प्रश्न पूछने वाले का खयाल ऐसा है कि जब दुख है, तो छूटता क्यों नहीं ! इसीलिए नहीं छूटता कि यही तो है तुम्हारे पास । दुख की संपदा के अतिरिक्त तुम्हारे पास है क्या ? इसको ही छोड़ दोगे, तो बचता क्या है ? 1 एक दिन हिसाब लगाना बैठकर । एक कागज पर लिखना कि क्या-क्या दुख है जीवन में। कंजूसी मत करना । सारी फेहरिश्त लिख डालना । और फिर सोचना कि यह सब छूट जाए, तो मेरे पास क्या बचता है ? तुम एकदम घबड़ा जाओगे। क्योंकि इसके अतिरिक्त तुम्हारे पास कुछ भी नहीं बचता। यही चिंताएं, यही विषाद, यही फिक्रें, यही स्मृतियां, यही कामनाएं, यही वासनाएं, यही सपने - इनके अतिरिक्त तुम्हारे पास क्या है ? यही आपाधापी, यही रोज का संघर्ष – इसके अतिरिक्त तुम्हारे पास क्या है ? तुम्हें पता है, छुट्टी का दिन लोगों का मुश्किल से कटता है ! काटे नहीं कटता । तरकीबें खोजनी पड़ती हैं नए दुख की; कि चलो, पिकनिक को चलें । कोई नया दुख उठाएं। काटे नहीं कटता । खाली बैठ नहीं सकते। क्योंकि खाली बैठें, तो खाली मालूम होते हैं। दफ्तर की याद आती है ! बड़ा मजा है। दफ्तर में छह दिन सोचते हैं, छुट्टी हो । और जिस दिन छुट्टी होती है, उस दिन सोचते हैं कि कब सोमवार आ और दफ्तर खुल जाए ! फिर चलें । 1 रविवार के दिन पश्चिम के मुल्कों में सर्वाधिक दुर्घटनाएं होती हैं। क्योंकि रविवार के दिन सारे लोग खुल्ले छूट गए। जैसे सब जंगली जानवर खुले छोड़ दिए । अब उनको कुछ सूझ नहीं रहा है कि करना क्या है ! सबके पास कारें हैं। अपनी-अपनी लेकर निकल पड़े ! तुमने चित्र देखे हैं पश्चिम के समुद्र तटों के ! वहां लोग इकट्ठे हैं। इतनी भीड़-भाड़ मालूम होती है। खड़े होने की जगह नहीं है ! इससे अपने घर में ही थोड़ी ज्यादा जगह थी । चले! मीलों तक कारें एक-दूसरे से लगी चल रही हैं। चार-छह घंटे कार ड्राइव करके पहुंचे। फिर चार-छह घंटे कार ड्राइव करके लौटे। और वहां वही भीड़ थी, 307

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