Book Title: Devsi Rai Pratikraman
Author(s): Sukhlal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 294
________________ ० कुंबाई ० को । तोड़ने साम्यग्ज्ञान सम्मक् ० 'बाएसिरि' • हरणे समारं - हरणेसुंभार सारे 'बाल '[ श्रुत को ] नें सिद्धेम्यो का विमक्ति दूर्थ्यांतो ० रियबीरियारे आद बाह मन 39 " .... " .... ... .... .... ... .... सावध-आरम्भ भस • ० त्रप्र० ... .... .... 0208 ... .... ... ... ... ... ... ... .... .... 600 0.0 ... [ ३ ] ० कुवाइ ० को तोड़ने सम्यग्ज्ञान सम्यक् 'वाएसिरी' • हरणे समीरं - हरणे संभार सारे 'लोल' सिद्धेभ्यो को बाहर मैं ने [ श्रुत ] को.... ने ० ऽत्र प्र० 0 " "" 97 .... 17 20.0 विभक्ति दुर्ध्यातो ०रेय वीरियायारे श्रादि , .... 14 .... .... सावद्य आरम्भ भेस .... ... dnan ... ... .... :: ४५ ४५ ४६ ४६ ४६ ४७ ४७ ५६ ६१ ६१ ६२ ૬૪ ६६ ७४ १२ * १३ ३ ३ by ... ६२ ६६ 8800 ... • १३ ५१ • ५१ ५३ ५५ ....१४ ... .... ... .... .... ... ... .१ ... το ८३ ....१६ ८६ ....१० ८८ ε• ... ... १३ 000

Loading...

Page Navigation
1 ... 292 293 294 295 296 297 298