Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah
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( २५ )
॥ २५ ॥ एयं च दोस दहुएं, नायपुत्तेण जासियं; सवाहारं ननुद्यंति, निग्गंथा राइनोयां ॥ २६ ॥ पुढविकायं नहिंसंति, मसा वयसा कायसाः तिविदेणं करण जोएं, संजया सुसमाहिया ॥ २७ ॥ पुढविकायवि हींसंतो, हिंस उ तयस्सिए; तस्सेय विविदे पाणे, चख्खुसे य चख्खसे ॥ २८ ॥ तम्हा एवं विया - वित्ता, दोसं डुग्गर वढणं, पुढविकायं समारंजं, जावजीवाए वझए ||२|| कायं नहिंसंति, मासा वयसाकायसाः तिविहे करण जोणं, संजया सुसमाहिया ॥ ३० ॥ कार्यवि हिंसंतो, हिंसइ उ तयस्सिए; तस्सेय विविहे पाणे, चख्खुसेय, खुसे || ३१ ॥ तम्हा एयं वियाणित्ता, दोसं दुग्गड़ वढणं कार्य समारंनं, जावजीवाए वद्यए ॥ ३२ ॥ जायतेयं नचंति, पावगं जलंइत्तए; तिरकमऽन्नयरंस, सबउवि रासयं ॥ ३३ ॥ पाइ परिणं वावि, उ अणुदिसामवि; हे दाहि
वावि, दहे उत्तर विय ॥ ३४ ॥ नूयाण मेसमाघान, ववाहो नसंसन; तंपश्व पयावा, संजयाकिंचि नारंजे ॥ ३५ ॥ तम्हाएयं वियाणित्ता, दोसं दुग्गड़ वढ्ढणं; अगणिकायं समारंजं, जावजीवाए वद्यए ॥ ३६ ॥ अनिलस्स समारंजं, बुद्धा मन्नंति तारिसं; सावऊं वहुलं चेयं, नेयं ताइहिं सेवियं ॥ ३७ ॥ तालि - ट्टे पत्ते, साहा विदुयऐण वा नते वीश्मीचंति, वे यावे
वापरं ॥ ३८ ॥ जंपिवळं व पायं वा, कंवलं पायपुचणं, न ते वा मुरंति, जयं परिहरतिय ॥ ३ए ॥ तम्हा एयं वियावित्ता, दोसं डुग्गर वढणं; वाउकाय समारंनं, जावजीवाए वझए॥ ४० ॥ वण स्सइकार्य न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा;

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