Book Title: Dandak Laghu Sangrahani Author(s): Yatindrasuri Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar View full book textPage 4
________________ श्री दंडक प्रकरण नमिउं चउवीस जिणे, तस्सुत्त - वियार-लेस - देसणओ; । दंडग - पएहिं ते च्चिय, थोसामि सुणेह भो भव्वा ॥ १ ॥ गाथार्थ : चौबीस जिनेश्वर भगवंतों को प्रणाम करके दंडक में उनके द्वारा निर्दिष्ट सिद्धांतसूत्रों के लेश भाग को बतलाते हुए मैं उनकी स्तुति करूँगा, अतः हे भव्य प्राणियो ! तुम उसे सुनो ॥१॥ नेरइआ असुराइ, पुढवाई - बेइंदियादओ चेव; । गब्भय - तिरिय- मणुस्सा, वंतर - जोइसिय- वेमाणी ॥२॥ गाथार्थ : नारक, असुरकुमार आदि, पृथ्वीकाय आदि, बेइन्द्रिय आदि गर्भज तिर्यंच और मनुष्य, व्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक ||२|| संखित्तयरि उ इमा, सरीर - मोगाहणा य संघयणा; । सन्ना संठाण कसाय, लेसिंदिय दुसमुग्धाया ॥ ३ ॥ दिट्ठी दंसण नाणे, जोगु-वओगो-ववाय चवण ठिई; । पज्जत्ति किमाहारे, सन्निगइ आगई वे ॥ ४॥ गाथार्थ : अति संक्षेप में संग्रह इस प्रकार है 1. शरीर, 2. अवगाहना, 3. संघयण, 4. संज्ञा, 5. संस्थान, 6. कषाय, श्री दंडक प्रकरण ३Page Navigation
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