Book Title: Chintan Kan
Author(s): Amarmuni, Umeshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 117
________________ O जिसको भी देखिए वही उत्तेजना पूर्ण मन-मस्तिष्क लिए हुए है। छोटी-छोटी बातो को लेकर आए दिन संघर्ष होते है । क्या व्यक्ति, क्या समाज और क्या राष्ट्र सब असहिष्णु होते जा रहे है। परिणाम पारस्परिक टकराहट के रूप में सामने आ रहा है। सब एक दूसरे से भयाक्रात है । यह भय की भावना अविश्वासो को जन्म दे रही है। मनुष्य और उसकी कार्य पद्धति अन्दर मे कुछ और तथा वाहर मे कुछ अन्य ही वनती जा रही है। इससे उत्तेजना फैलती है। फलत अनेकानेक सघर्ष, उपद्रव सामने आ जाते है। जिससे मानव-मन की पवित्रता, शालीनता और सहज जीवन जीने की वृत्ति समाप्त हो जाती है। सघर्षों और उपद्रवो के मूल मे असहिष्णुता ही होती है। इसीलिए मन की शान्ति, कर्म की पवित्रता एव सफलता के लिए मन, मस्तिष्क का सुस्थिर तथा उत्तेजनाहीन होना आवश्यक है। यह ही व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र तथा विश्व शान्ति का मूलमत्र है। चिन्तन-कण | १०७

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