________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ ढ ] मरीजा खाने-पीनेके कष्टके मारे, हल्का-हल्का ज्वर होनेपर भी उसे छिपाती और जब ज्वरका जोर होता तब दवा खा लेती और फिर अपनी इच्छासे छोड़ देती । वह कहती, कि ज्वर चला गया, पर वास्तवमें वह जाता नहीं था, भीतर बना रहता था । इस तरह दो-तीन महीनोंमें वह पुराना हो गया, धातुओंमें प्रवेश कर गया । इस समय वह दिन-रात चौबीसों घण्टे बना रहने लगा। महीने भर तक एक क्षणको भी कम न हुआ । ज्वरने शरीरकी सब धातुएँ चर ली। बल
और मांस नाममात्रको रह गये। अतिसार भी आ धमका। दम-दमपर आँव और खूनके दस्त होने लगे। अग्नि मन्द हो गयी। भोजनका नाम भी बुरा लगने लगा। हमने सबसे पहले अतिसारका दूर करना उचित समझा, क्योंकि दस्तोंके मारे रोगीकी हालत खतरनाक होती जा रही थी। सोचा गया "कर्पूरादिवटी", जो चिकित्साचन्द्रोदय तीसरे भागके पृष्ठ ३४० में लिखी है, इस मौकेपर अच्छा काम करेंगी। उनसे अतिसार तो नाश होगा ही, पर ज्वर भी कम होगा, क्योंकि ऐसे हठीले ज्वरोंमें, खासकर सिल या उरःक्षतके ज्वरोंमें जब ज्वर सैकड़ों उपायोंसे ज़रा भी टस-से-मस न होता था, हम कपूरके योगसे बनी हुई दवाएँ देकर, उनका अपूर्व चमत्कार देख चुके थे। निदान, छ-छै घण्टोंके अन्तरसे “कर्पूरादिबटी' दी जाने लगीं । पहली ही गोलीने अपना आश्चर्यजनक फल दिखाया। चौबीस घण्टोंमें ज्वर कुछ देरको हटा। दस्त भी कुछ कम आये। दूसरे दिन आँव और खूनका आना बन्द हो गया । ज्वर १८ घण्टेसे कम रहा। तीसरे दिन ८।१० पतले दस्त हुए, जिनमें आँव और खून नहीं था और ज्वर बारह घण्टे रहा। उस दिन हमने हर चार-चार घण्टेपर दो-दो और तीन-तीन माशे बिल्वादि चूर्ण, जो तीसरे भागके पृष्ठ २७० में लिखा है, अर्क सौंफ और अक़ गुलाबके साथ दिया। चौथे दिन दस्त एकदम बँधकर आया, ज्वर ३।४ घण्टे रहा और उतर गया । पाँचवें दिन ज्वर और अतिसार दोनों विदा हो गये।
For Private and Personal Use Only