Book Title: Chhahadhala
Author(s): Daulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
Publisher: B D Jain Sangh

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Page 176
________________ पांचवीं ढाल १५१ : दुर्लभताका चिन्तवन करना सो बोधि-दुर्लभ भावना है । आचार्य कुन्दकुन्द ने बारस -अणुवेक्खामें कहा है कि जिस उपायसे सद्-ज्ञान उत्पन्न होता है उस उपायकी चिन्ताको बोधि कहते हैं * । यह बोध अत्यन्त दुर्लभ है, क्योंकि अनादि कालसे लेकर आज तक यह जीव बहुभाग अनन्त काल तो निगोद में ही रहा है फिर वहांसे निकलकर पृथ्वी कायिक आदि एकेन्द्रिय जीवोंकी अन्य पर्यायों को प्राप्त होता है, उनके भी बादर सूक्ष्म आदि अनेक भेद हैं सो उनमें ही असंख्यात काल तक परिभ्रमण करता है । एकेन्द्रियोंमें से निकलकर त्रस पर्याय पानेको चिन्तामणि रत्नके पानेके समान कठिन बतलाया गया है, अथवा बालूके समुद्र में गिरी हुई हीराकी करणीका मिलना जैसा कठिन है, वैसाही कठिन सपर्याय पाना है । इस सपर्याय में विकलेन्द्रिय जीवोंकी अत्यन्त अधिकता है, सो उनमें अनेकों पूर्व कोटि वर्षों तक भ्रमण करता रहता है । उनमें से निकलकर पंचेन्द्रिय की पर्याय पाना ऐसा कठिन है, जैसाकि अनेक गुण पाने पर भी कृतज्ञता गुणका पाना । किसी प्रकार * सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणां ज्ञप्तिरनुष्ठानं च बोधिः । तत्वार्थवृत्ति:, [अ० ६ सू० ७ । रत्नत्रयस्वभावादिलाभस्य कृच्छत्प्रतिपत्तिः बोधिदुर्लभत्वं || राजवात्तिक ० ६ सूत्र ७ । * उप्पज्जदि सगाणं जेण उवाएण तस्सुवायरस | चिंता हवे बोही अचंतं दुल्लहं होदि || ७३॥ बारस वेक्खा

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