Book Title: Chaulukya Chandrika
Author(s): Vidyanandswami Shreevastavya
Publisher: Vidyanandswami Shreevastavya

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Page 255
________________ ५३५ वीरसिंह के शासन पत्र का विवेचन 1 प्रस्तुत शासन पत्र मंगलपुरी के चौलुक्य राज वीरसिंह कृत दान का प्रमाण पत्र है "इस दान पत्र द्वारा वीरसिंह ने कर्दमेवर महादेव के सेवक गौतम गोत्र पंच परवर ऋग्वेद आश्वा लयन शाखाध्यायी यज्ञदत्त-सोमदत्त - हरिदत्त-रुद्रदत्त और विष्णुदत्त नामक पांच ब्राह्मणोंको कर्दमेश्वर हद में स्नान कर स्ववंश की राज्यलक्ष्मी को पाटन के बंधन से मुक्त कर वसंतपुर नामक ग्राम को अपनी राजधानी बनाने के प्रभृति यानन्दोत्सव उपलक्ष में बालखिल्यपुर नामक ग्राम दान दिया है। बीरसिंह की वंशावली का प्रारंभ मंगलपुरी में चौलुक्य राजवंश की संस्थापना करने वाले विजयसिंहसे किया गया है। और विजयसिंह से लेकर वीरसिंह पर्यन्त निम्न पांच नाम है। विजयसिंह [ लाट बासुदेवपुर खण्ड 1 धवलदेव I वासंतदेव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 1 रामदेव 1 सिंह इनमें विजयसिंह- धवलदेव और वीरसिंहके विरूद महाराजाधिराज परमेश्वर पर भट्ट रक और वसन्तदेवका महा सामन्त महाराज तथा रामदेव का विरूद केवल सामन्तराज है। इससे प्रकट होता है कि विजयसिंह के पश्चात् केवल धवलदेव ही स्वतंत्र था। उसके बाद वसन्तदेव को किसी ने पराभूत कर स्वाधीन किया था । अतः उसका विरूद महा सामन्त महाराज हुआ । इतने ही से अलं नहीं हुआ है। रामदेव के हाथसे और भी राज्य सत्ता का अपहरण होना प्रतीत होता है। क्योंकि हम उसका विरूद केवल सामन्तराज पाते हैं । परन्तु रामदेव के उत्तराधिकारी बीरसिंह के विरूद "महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टा रक दृष्टिगोचर होता है । इससे प्रफट होता है कि वीर सिंह ने पुनः स्वातंत्र्य लाभ किया था । शासन पत्र में स्पष्ट तया दृष्टिगोचर होता हैं कि वह पाटण के रेशमी संदाम अर्थात अगाडी www.umaragyanbhandar.com

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