Book Title: Charnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 12
________________ चरणानुयोग-प्रवेशिका ३६. प्र० - चोरी किसे कहते हैं ? उ०- प्रमाद के योग से बिना दी हुई वस्तुके ग्रहण करनेको चोरी कहते हैं । - चोरी करनेमें क्या बुराई है ? ३७. प्र० - उ०- धन मनुष्यका बाह्य प्राण है । अतः जो मनुष्य किसीके धनको हरता है वह उसके प्राणोंको हरता है । ३८ प्र० - अब्रह्म किसे कहते हैं ? उ०- रागके वशीभूत होकर मैथुन सेवन करनेको अब्रह्म कहते हैं । ३९. प्र० - परिग्रह किसे कहते हैं ? उ०- मोहके उदयसे उत्पन्न हुए ममत्व भावको ( यह मेरा है, यह मेरा है इस प्रकारके भावको ) परिग्रह कहते हैं । अतः जिसके पास कुछ भी नहीं है किन्तु जिसके मन में दुनिया भर की तृष्णा मौजूद है वह परिग्रही है । ४०. प्र० – तो क्या धन वगैरह परिग्रह नहीं हैं ? उ०- धन जमोन वगैरह भी परिग्रह हैं क्योंकि उनके निमित्तसे हो मनुष्य के मन में परिग्रहकी भावना पैदा होती है । ४१. प्र० - परिग्रह के कितने भेद हैं ? उ०- संक्षेप में परिग्रहके दो भेद हैं- एक अभ्यन्तर और दूसरा बाह्य । ४२. प्र० - अभ्यन्तर परिग्रहके कितने भेद हैं ? उ०- चौदह भेद हैं- मिथ्यात्व स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा ( ग्लानि ), क्रोध, मान, माया और लोभ । ४३. प्र० - बाह्य परिग्रहके कितने भेद हैं ? उ०- दस भेद हैं- धन ( गाय, बैल वगैरह ), धान्य ( अनाज ), क्षेत्र (खेत), वस्तु ( मकान), हिरण्य ( चाँदी ), सुवर्ण ( सोना ), कुप्य ( वस्त्र ), भाण्ड ( बरतन ), दास और दासी । ४४. प्र० - अणुव्रत के कितने भेद हैं ? उ०- पाँच भेद हैं- अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत और परिग्रह परिमाण अणुव्रत । ४५. प्र० -- अहिंसाणुव्रत किसे कहते हैं ? उ०--मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना, इन नौ संकल्पोंसे चलते फिरते जीवोंका घात न करनेको अहिंसाणुव्रत कहते हैं । ४६. प्र० - नौ संकल्प कौनसे हैं ? उ०- 'इस जीव को मैं मारता हूँ' यह कृत है । 'मारो मारो' यह कारित है । 'इसको यह ठीक मार रहा है' यह अनुमोदना है । इन तीनों हो अंगों का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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