Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Unknown

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Page 301
________________ पञ्चस्काण नाष्य अर्थसहित. ३०१ अर्थः-(सुगुणेसु) सारा गुणीने विषे (र विकार) राजी थईये. (नेहवऊसु) साचा स्नेह रहित पुरुषोने विषे (रान) राग (न बझा) न बांधीये. (पत्तपरिका) पात्रनी परीक्षा (कि आइ) करीये. (इमो अ) आ ज (दरकाण) माह्या पुरुषोनी (कसवट्टो) कसोटीनो पर .११ ___ नाकऊमायरिङ अप्पा पाहिज्जए न वयणिज्जे ॥ न य साहसं चइज्जइ न प्रिज्जइ तेण जगहलो ॥१५॥ अर्थः-(अकऊं) अकार्यने (न आयरिज्ज ३) आचरीये-अथवा आदरीये नहीं. (अप्पा) आत्माने (वयणिज्जे) निंद्य वचनादिकमां (न पाहिज्जए) न पामीये. (य) वली (साहसं) साहस (साहसिकपणा) ने (न चइज्ज)न तजीये. (तेण) तेथी (जगहलो) जगतमां हाथ (नप्रिज्ज) उन्नो राखीये ॥ १॥ वसणे वि न मुज्झिज्जइ मुच्च माणो म नाम मरणे वि ॥ विहवस्कए. वि दि

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