Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company

View full book text
Previous | Next

Page 229
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२०) मणशाळा तथा कामना वीकार जागे एवो सरस अहोर तथा अपछराना जेवां वेश्याए आभुषण पहेरी शणगार सजेलो तथा तेना कटाक्षणबाण काम जागे तेवां, वळी रागना पचन सदाए बोले, एटला बधा अनुकुळ परीसह जीतवाने केशरीसिंह जेवा श्री स्थुलीभद्र जेवा कोइ जोगी नहि. माटे धन्य छे श्री स्थुलीभद्रजी जोगीने, के जेनुं नाम देतां कर्म छुटी जाय. | इति भावना संपूर्ण । ॥अथ प्रभातनां पच्चरकाण ॥ ॥ प्रथम नमुकारसहि मुठसहिचें ॥ ॥ उग्गएमरे, नमुक्कारसहिअं, मुठिसहिथं पच्चरकाइ ॥ चउविहंपि आहारं, असणं, पाणं, खाइमं, साइमं ॥ अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सब्यसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरे ॥१॥ ॥बीजु पोरिसि साढपोरिसिजें ॥ ॥ उग्गएमूरे, नमुक्कारसहिअं, पोरिसिं, साढपोरिसिं मुठिसहिअं, पच्चरकाइ ॥ उग्गएमरे, चउविहंपि आहारं, असणं, पाणं, खाइमं साइमं ॥ अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारैणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं,साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरे ॥२॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242