Book Title: Bruhat Stavanavali
Author(s): Bhagubhai Panachand Jhaveri
Publisher: Bhagubhai Panachand Jhaveri
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________________ (३५ए) श्रुतबलपण घट्यो रे / तोपण एहआधार / देवचंद जिनमतनो तत्त्व एहरे / श्रुतस्युं धरजोप्यार // श्रुतम् // 12 // // ढाल 2 जी अनुमतिदीधीमाये रोवती ए देशी // // रयणावली कनकावली / मुक्तावली गुणरयण / वज्र मध्यने जवमध्यए / तपकरीने हो जीपोरिपुमयण // 1 // नवियण तपगुणादरो / तपतेजेरे जीजे सहुकर्म / विषय विकारसहुटले / मनगंजेरे जंजे नवमर्म // नवि० // 2 // जोगजय ईजियजय तदा / तपजाणो कर्म सूमणसार // उवहाणे योगहाकरी। शिवसाधेरे शुधाअणगार // नवि० // 3 // जिमजिम प्रतिज्ञापढथको / वैरागी तपसी मुनिराय / तिमतिम अशुलदलजीजवे / रवितेजेरे जिम शीतविलाय // नवि०॥॥ जे निकुपमिमायादरे / आसनअकंपसुधीर / अतितीनसमतानावमां / तृणनीपेरे हो जाएंतशरीर // नवि० // 5 // जिएसाधु तपतरवारथी / सूड्यो के हो अरिमोहगयंद / तिण साधुनो हुँदासबुं / नित्यवंडेरे तसपयअरविंद // नवि० // 6 // आचारसूयगमांगअंगमां / तिमकह्यो नगवईअंग / उत्तराध्ययनगुणतीसमें / तपसंगे हो सहुकर्मनोनंग // नवि०॥७॥ ते मुविध उक्करतपतपे / नवपासासविरक्त, धनसाधु मुनिढंढणसमा / शषिखंधकहो तीसगकुरुदत्त // जवि० // ॥निजआतमकंचनजणी / तपअग्निकरी सोधंत / नवनविलब्धि बल बते / उपसर्गेहो तेसहंत महंत // नवि०॥ ए॥ धन्यतेह जेधनगृहतजी। तनस्नेहनो करीनेह / निसंगवनवासे वसे / तपधारीहो ते अनिग्रहगेह // नवि० // 10 // धन्यतेह गबगु

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