Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 107
________________ ९८ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन चतुर्थी और अष्टमी तिथियों को छोड़ दीक्षा-समारोह किसी भी शुभ-दिन में करने का विधान किया गया है। यह समारोह शालि अथवा ईख के खेत, पुष्करिणी अथवा शिखरयुक्त चैत्यगृह के निकट मनाये जाने चाहिए। दीक्षा के समय साधु को रजोहरण, गोच्छक और प्रतिग्रह ये तीन प्रकार के उपकरण और तीन पूरे वस्त्र धारण करने का और साध्वियों को चार पूरे वस्त्र और साधुओं वैसे ही तीन उपकरण लेने का विधान किया गया है। बृहत्कल्पभाष्य में यह भी उल्लेख है कि रजोहरण, गोच्छक आदि योग्य दुकानों (कुत्रिकापण) से खरीदी जानी चाहिए। प्रव्रज्या के समय दीक्षार्थी द्वारा चैत्य, आचार्य, उपाध्याय और भिक्षु की और दीक्षार्थिनी द्वारा प्रवर्तिनी, अभिषेका या उपाध्याया, स्थविरा और भिक्षुणी की पूजा-सत्कार करने की विधि की भी चर्चा की गई है। आहार जैन भिक्षु-भिक्षुणियों के लिए आहार संबंधी प्रायः समान नियमों की व्यवस्था थी। बृहत्कल्पसूत्र में उल्लेख है कि जिस स्वामी के उपाश्रय (शय्यातर) में रह रहे हों, उसके घर से भिक्षा ग्रहण नहीं करना चाहिए। दूसरे के घर का आहार भी यदि शय्यातर के यहाँ आ जाय, तब भी वे उसके यहाँ से भोजन नहीं ले सकते। भिक्षा-वृत्ति के लिए भिक्षुणी को अकेले जाना निषिद्ध था। उसे दो या तीन भिक्षुणियों के साथ जाने का विधान किया गया था। भिक्षुणी को विषम मार्ग तथा पेड़ों या अनाज के डण्ठलों से युक्त मार्ग पर चलने का निषेध था। यदि वर्षा हो रही हो, घना कुहरा पड़ रहा हो या टिड्डी आदि जीव-जन्तु इधर-उधर घूम रहे हों तो ऐसे समय में भिक्षा वृत्ति के लिए जाने का निषेध किर गया था।११ जैन साधु या साध्वी को दिन में केवल एक बार भोजन करने का विधान था। प्रथम प्रहर में लाये हुये भोजन को अंतिम प्रहर तक रखना निषिद्ध था। यह निर्देश दिया गया है कि ऐसे आहार को न तो वे स्वयं खायें और न तो किसी दूसरे को दें अपितु किसी एकान्त स्थान में उस आहार का परित्याग कर दें।१२ इसी प्रकार यदि शंकाओं से युक्त भोजन स्वीकार कर लिया गया हो तो उसे न स्वयं ग्रहण करना चाहिए और न किसी दूसरे को देना चाहिए। यदि कोई अनुपस्थापित शिष्या (अणुट्ठावियए) हो तो उसे दिया जा सकता है।१३

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