Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 57
________________ मन की चैतन्य - यात्रा मेरे प्रिय आत्मन्! एक सौदागर व्यापार के लिए हिन्दुस्तान आया । उसे यहां एक परिंदा बहुत पसंद आया। उसने वह परिंदा खरीद लिया । उस परिंदे के लिए उसने एक खूबसूरत सुनहरा पिंजरा भी बनवाया। वापसी में वह उस परिंदे को अपने देश ले गया। वहां उसने उसकी देखभाल, खान-पान, खेलकूद की बेहतरीन व्यवस्था की । अगली बार जब सौदागर अपना माल बेचने फिर हिन्दुस्तान आने लगा तो उसने परिंदे से पूछा कि हिन्दुस्तान से तुम्हारे लिए कुछ सामान लाना है ? परिंदे निःसांस छोड़ते हुए कहा, मालिक! लाना तो कुछ नहीं है लेकिन मेरी एक प्रार्थना है कि आपको हिन्दुस्तान के जंगल में यदि कोई मेरा कोई जाति भाई मिल जाए तो उसे यहां मेरे पिंजरे में कैद होने का समाचार दे देना । सौदागार हिन्दुस्तान आया । वह जंगल से गुजर रहा था, तभी उसने एक पेड़ की टहनी पर अपने परिंदे के सजातीय को बैठे देखा । वह रुका। उसे उसके बन्धु के परदेश में कैद होने की बात बताई। उस परिंदे ने जैसे ही यह समाचार सुना, वह टहनी से धड़ाम से नीचे आ गिरा और मर गया । सौदागार को इससे बड़ा दुख हुआ। वह उसकी मृत्यु का निमित्त बना था । पर वह कर भी क्या सकता था। वह अपने व्यवसाय का काम निपटाकर स्वदेश लौट गया । वहाँ उसके परिंदे ने उससे अपने सन्देश का जवाब पूछा, तो सौदागर थोड़ा सकुचाया, उससे जवाब देते न बना। लेकिन परिंदे के बहुत आग्रह करने पर उसने आप बीती सुनाई। उसे बताया कि तुम्हारे कैद का समाचार सुनते ही तुम्हारा स्वजातीय बन्धु मर गया । इतना सुनते ही वह पिंजरे का परिंदा पिंजरे में ही बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ५२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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