Book Title: Bhudhar Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Kavi
Publisher: Bhudhardas Kavi

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Page 27
________________ २७ भूधरजैनशतक ... अड़े (नेह ) राग (परमार्थ] उत्तम कार्य ( ओरे) दिशा __ सरलार्थ टौका जाड़े की समय में जब सर्व मनुष्य अपने शरीर कोसकोड़ ते हैं साधू जन अपने तनको नही मोड़ते और ऐसो सरदीमे नदीकेतट पर धैर्य कीसाथ ध्यानलगाये खड़े है जेठके महीने को लूओमैं जब चौल अण्डे छोड़ तीहै और पशु पक्षी जीव सरब छाह की चाह ना कर ते हैं ऐसी गरमी मैं ये साधू पहाड़ की चोटी पर तप रहे हैं भयानक बाद ल गरजे और च्या रों ओर घटा चले ज्यों ज्यों बादल की लहर उडैहै त्यो त्यों ये साधू अपने धीर्य के बल को खोल कर सन्मुख अड़े हुवे हैं डिग मिगाते नहीं हैं देह केनेह को तोड़ ते हैं और परमार्थं से प्रीत जोड़ते हैं ऐसे साधू गुरों की ओर हम हाथ जोड़ते हैं . श्री जिन-बाणी को नमस्कार मत्तगयंद छंद बौर हिमाचल तें निकसी गुरु, गौत्तम के मुख । . .. कुण्ड ठरी है। मोह महाचल भेद चली जग, की जड़तातप दूर करी है। ज्ञान पयोनिधि माह रलो बहु, भङ्ग तरङ्गन सूं, उछली है। ता ,

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