Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

View full book text
Previous | Next

Page 104
________________ (१०२) सांगलो, सर्वोत्तम सत्य धर्मबयान तो।।पु०॥२५९॥ ॥ दुहा ॥ धर्मे शिव सुख संपजे, धर्मे दुःख विरलाय । दान सील तप नाव ए, धर्म नेद कहवाय ॥ १॥ प्रथम पद दीयो दानने, उत्तम जाण. जिनेश । तेहतणी महीमा सुणो, संचित कर्मकी रेश ॥२॥ __ढाल-सतीने शिरोमण अंजना ॥ये देशी ॥ तिण अवसर मंही मंडपे, विचरता जग रक्षक धीमी चाल तो ।। करणं चरणं गुणसागरूं, नवूकल्प विचरे नूंम निहाल तो ॥ जात कूल बल रूप संपन्ने, क्रोधांदी षड्रीपु न्हाख्या गाल तो।। ज्ञानादी त्री रत्न संचवे, भ्रम निदा ले छिन् दोष १ पृथवी. २ क्रिया. ३ चारित्र. ४ आठ महिनके आठ विहार ओर नवमा चोमासाः क्रोध, काम, मद, मोह, लोभ, मत्सर. ६ देखा जैनतत्वं प्रकाश.

Loading...

Page Navigation
1 ... 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126