Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 726
________________ परिशिष्ट ३ युगल शब्द विमर्श अनुशिष्टि-धर्मकथा जारजातो त्ति वयणेण अक्कुट्रो। हस्तदंडादिना प्रहारदानं • अनुशिष्टि-उपदेशप्रदान। स्तुतिकरण। इहलौकिक ताडनं। (निचू ३ पृ ४२) अपायदर्शक वचन। आगाढवचन-परुषवचन - धर्मकथा-इहलौकिक और पारलौकिक कर्मविपाक का .आगाढवचन-वह वचन, जिसके बोलने से शरीर में उष्मा विस्तार से प्ररूपण करने वाले वचन। पैदा होती है। उपदेशपदाणमणुसट्ठी, थुतिकरणं वा अणुसट्ठी। (निचू ४ पृ - परुषवचन-स्नेहहीन वचन । ३७५) यद इहलोकापायदर्शनं क्रियते साऽनुशिष्टिरुच्यते। यत् सरीरस्योष्मा येनोक्तेन जायते तमागाढं। णेहरहियं निप्पिवासं पुनरिह परत्र च सप्रपञ्चं कर्मविपाकोपदर्शनं सा धर्मकथा। फरुसं भण्णति । (निच ३ प १) (बृभा २८९८ की वृ) आमार्जन-प्रमार्जन अनूप-जंगल - आमार्जन-हाथ से साफ करना। • अनूप-नदी आदि के प्रचुर पानी वाला प्रदेश। • प्रमार्जन-रजोहरण से साफ करना। -जंगल-निर्जल प्रदेश। हत्थेण आमज्जणं, रयहरणेण पमज्जणं। (निचू २ पृ.२१०) नद्यादिपानीयबहुलोऽनूपः, तद्विपरीतो जङ्गलः निर्जल इत्यर्थः। आहेण-पहेण (बृभा १०६१ की वृ) .आहेण-अन्य गह से आने वाला उपहार (मिठाई आदि)। अप्रासुक-अनेषणीय वधू के घर से वर के घर में आने वाला उपहार । वर-वधू के • अप्रासुक–सचित्त। घर का परस्पर का लेन-देन । - अनेषणीय-आधाकर्म आदि दोषों से दूषित।। - पहेण-अन्य गृह में नीयमान उपहार । वरगृह से वधूगृह 'अप्रासुकं' सचित्तम् 'अनेषणीयम्' आधाकर्मादिदोषदुष्टम्।। में ले जाया जाने वाला उपहार। (आचूला प ३२१) जमन्नगिहातो आणिज्जति तं आहेणं. जमन्नगिहं णिज्जति तं अबहुश्रुत-अगीतार्थ पहेणगं। जं वहगिहातो वरगिहं णिज्जति तं आहेणं, जं वरगिहातो - अबहुश्रुत-वह मुनि, जिसने निशीथ सूत्र का अध्ययन वहूघरं णिज्जति तं पहेणगं। वरवहूर्ण जं आभव्वं परोप्परं णिज्जति नहीं किया। तं सव्वं आहेणकं । (निचू ३ पृ २२२, २२३) - अगीतार्थ-वह मुनि, जिसने आवश्यक आदि सूत्रों का उत्क्षिप्त-विक्षिप्त अर्थश्रवण नहीं किया। • उत्क्षिप्त-धान्यों के पृथक्-पृथक् ढेर। जेण आयारपगप्पो ण झातितो एस अबहुस्सुतो। जेण - विक्षिप्त-एक ओर से संबद्ध भिन्न-भिन्न धान्यराशियां। आवस्सगादियाणं अत्थो ण सुतो सो अगीयत्थो। उक्खित्त भिन्नरासी, विक्खित्ते तेसि होति संबंधो। (बृभा ३३०२) (निचू ४ पृ ७३) उत्सर्ग-अपवाद कथा आक्रोश-ताडन • उत्सर्गकथा--प्रकीर्णकथा।व्यवहारनय प्रधान प्रतिपादन। - आक्रोश-गाली-गलौज। - अपवादकथा-निश्चयकथा। शुद्ध (ऋजुसूत्र आदि) नय - ताडन-हाथ, दंड आदि से प्रहार। प्रधान प्रतिपादन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 724 725 726 727 728 729 730 731 732