Book Title: Bhavkutuhalam
Author(s): Jivnath Shambhunath Maithil
Publisher: Gangavishnu Shreekrushnadas

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Page 161
________________ (३५२) भावकुतूहलम् [ भावविचार:वाला ) होवे, यदि शुक्र पापराशिमें पापसंयुक्त हो तो पुरुष स्त्रीके सुखसे रहित रहे ॥ २९॥ चतुर्थे महिलाधीशे लग्ने लग्नाधिपे यदा ॥ कलत्रे वा कुटुम्बे वा व्यभिचारी नरोभवेत् ॥३०॥ सप्तमेश चतुर्थमें, लग्नेश लग्नमें यदि हो अथवा सप्तममें वा द्वितीय स्थानमें हो तो पुरुष व्यभिचारी ( यथेच्छ स्त्रियोंका गमन करनेवाला) होवे ॥३०॥ . यावन्तो निधने खेटा निजस्वामिसमीक्षिताः॥ तावन्तोऽपि विवाहाः स्युः प्राणिनां कथिता बुधैः३१ ' जितने ग्रह अष्टम स्थानमें अष्टमेशसे दृष्ट हों उतने विवाह मनुष्योंके पंडितोंने कहे हैं (ऐसा विचार सप्तम भाव में भी होताहै॥३१ जायाधीशे निजक्षेत्रे निजोच्चे कोणकंटके ॥ शुभग्रहैर्युते दृष्टे विवाहः सत्वरं भवेत् ॥ ३२ ॥ सप्तमेश अपनी राशिमें अथवा अपने उच्चमें त्रिकोण केंद्रभावमें हो और शुभग्रहसे युक्त या दृष्ट हो तो विवाह बहुत शीघ्र होवै ३२ ____ अथाष्टमभावविचारः। अष्टमाधिपतिः पापैर्युतो लग्नेश्वरोऽपि चेत् ॥ करोत्यल्पायुषं जातं शुभेक्षणविवाजतः ॥ ३३ ॥ अष्टमभावका विचार है कि, अष्टमेश अथवा लग्नेश पापयुक्त हो उसे शुभग्रह न देखे तो मनुष्योंको अल्पायु करता है ॥ ३३ ॥ तमाशनिभ्यां निधनाधिनाथः पौपर्युतो हीनबलोऽस्तगो वा ॥ अल्पायुषं जातकमेव सद्यः करीति नैवोच्चनिजह्मगश्चेत् ॥ ३४॥ अष्टमभावेश यदि राहु शनिसेयुक्त अथवा पापयुक्त एवं बल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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