Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 203
________________ १९० नरतिरिएसु गयाइं, पलिओवमसागराइंऽणंताई। किं पुण सुहावसाणं, तुच्छमिणं माणसं दुक्खं ?॥५१७॥ सकयाइं च दुहाई, सहसु उइन्नाइं निययसमयम्मि। न हु जीवोऽवि अजीवो, कयपुव्वो वेयणाईहिं॥५९८॥ तिव्वा रोगायंका, सहिया जह चक्किणा चउत्थेणं। तह जीव ! तु पि हु, सहसु सुहं लहसि जमणंतं॥५१९॥ जे केइ जए ठाणा, उईरणाकारणं कसायाणं। ते सयमवि वज्जंता, सुहिणो धीरा चरंति महिं ॥ ५२० ॥ हियनिस्सेयसकरणं, कल्लाणसुहावहं भवतरंडं। सेवंति गुरुं धन्ना, इच्छंता नाणचरणाइं॥५२१॥ मुहकडुयाइं अंते, सुहाइं गुरुभासियाइं सीसेहिं । सहियव्वाइं सया विहु, आयहियं मग्गमाणेहिं॥५२२॥ इय भाविऊण विणयं, कुणंति इह परभवे य सुहजणयं। जेण कएणऽन्नो वि हु, भूमिज्जइ गुणगुणो सयलो ॥ ५२३॥ एवं कए य पुव्वुत्तझाणजलणेण कम्मवणगहणं। दहिऊण जंति सिद्धिं, अजरं अमरं अणंतसुहं॥५२४॥ हेमंतमयणचंदणदणुसूररिणाइवन्ननामेहिं । सिरिअभयसूरिसीसेहि, रइयं भवभावणं एयं॥५२५॥ जो पढइ सुत्तओ सुणइ अत्थओ भावए य अणुसमयं। सो भवनिव्वेयगओ, पडिवज्जइ परमपयमग्गं ॥५२६॥ न य बाहिज्जइ हरिसेहि नेय विसमावईविसाएहिं । भावियचित्तो एयाए चिट्ठए अमयसित्तो व्व ॥ ५२७॥ उवयारो य इमीए, संसारासुइकिमीण जंतू । जायइ न अहव सव्वण्णुणो वि को तेसु अवयास ? ||५२८ ॥ तो अणभिनिविट्ठाणं, अत्थीणं किं पि भावियमईणं । जंतूण पगरणमिणं, जायइ भवजलहिबोहित्थं ॥ ५२९॥ इगतीसाहियपंचहि, सएहिं गाहाविचित्तरयणेहिं। सुत्ताणुगया वररयणमालिया निम्मिया एसा ॥ ५३०॥ भुजाव वियर, जिणधम्मो ताव भव्वजीवाणं। भवभावणवररयणावलीइ कीरउ अलंकारो ॥ ५३१॥ भवभावना

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