Book Title: Bhattarak Sampradaya
Author(s): V P Johrapurkar
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 336
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achan २९० भट्टारक संप्रदाय [७५६ - भट्टारक मुनि दक्ष इंद्रभूषण गुणधारं ॥ तास पट्ट उदयाद्रि कीर्ति सुरेंद्र विचारी। क्रियापात्र परधान भव्यजने हितकारी ॥ कुमुदचंद्र कृत स्तुति प्रवर तास कवित कीधा मुदा । सुरेंद्रकीर्ति गछपति कहे भणता सुखसंपत्ति सदा ।। ४५ (म. ८८) लेखांक ७५७ - एकीभाव स्तोत्र भट्टारक गुणपूर इंद्रभूषण जगभूषण । पट्टधर परधान सदा राजे गतदूषण ।। सुरेंद्रकीर्ति गछपति कह्या एकीभाव तणो कवित । भनता सुनता दिनप्रति ते नर पामे मुगति हित ॥ २६ (म. ८८) लेखांक ७५८ - विषापहार स्तोत्र गणनायक गुरुराज इंद्रभूषण मतिपूरा । सकलसंघ परिचार धर्ममारगमा सूरा ॥ सुरेंद्रकीर्ति गछपति प्रवर पट्टोद्धर पदवीधरण । विषापहार कृत कवित वर भव्यजीव जग उद्धरण ॥ ४० ( म. ८८ ) लेखांक ७५९ - भूपाल स्तोत्र श्रीजिनमार्ग विसुद्ध गछ काष्ठांवर दाख्यो । विविध क्रियाकलाप सकलगुणपूरण भाख्यो । भट्टारक मुनिराज इंद्रभूषण गछधारी । तास पट्ट सुविशाल सदा सोभे आचारि ॥ सुरेंद्र कीर्ति मुनिपति सकल नित्य ध्यान जिनवर करे । भूपाल कवितरचना रची भनता सहु पातक हरे ॥ २७ (म, ८८) For Private And Personal Use Only

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