Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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( १७५) (III) सड़क निर्माण :
नगरों में सड़क या मार्ग निर्माण कराना परम कुशलता का द्योतक है। जैन पुराण में मार्ग के लिए राजमार्ग, प्रतोली और रथ्या शब्द वर्णित हैं । राजमार्ग सीधे होते थे। पद्म पुराण में वर्णित है कि नगर में गलियाँ इतनी संकरी होती थीं कि सामने वेग से आ रहे व्यक्ति की टक्कर से रास्ते में खड़े हुए व्यक्ति के हाथ से बर्तन गिर जाता था । राजमार्ग नगर के मध्य से आता था। समराङ्गण सूत्रधार में राजमार्ग की चौड़ाई का माप जेष्ठ, मध्य और कनिष्क तीन प्रकार के नगरों में बांट दिया गया है । जो प्रायः २४०, २०" और १६" (३६ फुट, ३० फुट और २४ फुट) होना चाहिए । इनकी चौड़ाई का विस्तार लगभग इतना होना चाहिए कि चतुरंगिणी सेना, राजसी जुलूस एवं नागरिकों के चलने में किसी भी प्रकार की रुकाक्ट नहीं पड़नी चाहिए। यह राजमार्ग पक्का बवाना चाहिए। शुक्राचार्य के अनुसार उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ट प्रकार के नगरों के राजमार्ग की चौड़ाई ४५ फुट, ३० फुट एवं ३२ फुट होनी चाहिए । पद्म पुराण में वर्णित है कि जहाँ पर दो मार्ग एक दूसरे को समकोण पर काटें उस स्थान को चौराहा (चत्वर) कहा गया है, और जब एक मार्ग के बीच से कोई मार्ग निकलता हो तो उस स्थान को तिराहा (त्रिक) कहा गया है। विशेष अवसरों पर इन तिराहों एवं चौराहों सहित राजामर्ग को सुसज्जित किया जाता था।
उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि प्राचीन समय में नगर-निर्माण करते समय सड़कों का निर्माण भी कुशलतापूर्वक किया जाता था। जो कि नगर की सौन्दर्यता एवं रक्षा का प्रतीक होता था। (ल) सुरक्षा व्यवस्था:
नगर विन्यास में सुरक्षा-व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण स्थान था। प्राचीन काल में नगरों की रचना सुरक्षा को दृष्टिगत रखकर के ही की जाती थी। उस समय सुरक्षा के दो साधन थे। १. प्राकृतिक और २. कृत्रिम ।
१. पद्म पु० ६/१२१-१२२, महा० पु० ४३/२०८, २६/३. २. वेगिभिः पुरुषः....."जना भाजनपाणयः ।। पद्म पु० १२०/२७, ३. पद्म पुराण ९६/१२-१३