Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 382
________________ ३५७ सामाजिक समता सम्बन्धी संगोष्ठी का विवरण भेद होने पर भी समाज में एकात्मता बन सकती है और इस एकात्मता को समानता कह सकते हैं। अन्त में गोष्ठी का समापन करते हुए प्रो० बदरीनाथ शुक्ल ने कहा-सामाजिक समता पर विचार करते हुए हमें सामाजिक विषमता के स्वरूप पर भी विचार करना चाहिए। विषमता दो प्रकार की होती है। (१) प्राकृतिक तथा कृत्रिम । प्राकृतिक विषमता लिंग तथा रंग की होती है; किन्तु छुआछूत, ऊँच-नीच आदि भावनाजन्य उत्पन्न विषमता कृत्रिम एवं व्यवस्थाजन्य है। इसके निराकरण का अवश्य प्रयास होना चाहिए। भारतीय दर्शन इस प्रयास में कहीं भी बाधक नहीं, अपितु साधक ही हैं। अन्त में विविध स्थानों से आकर गोष्ठी को सफल बनाने लिए विद्वानों को साधुवाद दिया। परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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