Book Title: Bharat Jain Mahamandal ka 1899 Se 1947 Tak ka Sankshipta Itihas
Author(s): Ajit Prasad
Publisher: Bharat Jain Mahamandal
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( 6 ) कैद हो गए। मई १६४४ में नजरबन्दी से मुक्त हुए, वकालत का व्यवसाय त्याग दिया और सार्वजनिक कार्य में संलग्न हो गए।
कालिन के दिनों से ही आप लोकमान्य तिलक के अनुयायी रहे है। १६१६ नागपुर की बम्बई प्रान्तीय बाफरेन्स के सेक्रेटरी थे, और उन पाँच व्यक्तियों में थे जिन्होंने कान्फरेन्स का सम्पूर्ण घाटे का भार अपने उपर लिया था।
अहमदनगर पिंजरा पोल के मन्त्री २० बरस तक रहे। १९१४, १६२० में हुक्काल-निवारक-समिति के मन्त्री रहे।
अहमदनगर अयुर्वेद महाविद्यालय के संस्थापक है, और १९४२ तक उसके अध्यक्ष रहे हैं। . ..
अहमदनगर शिक्षण समिति की प्रबन्धकारिणी के २० बरस से ऊपर सदस्य, और कई बरस तक समिति के अध्यक्ष रहे हैं। तिलक स्वराज्य फंड के जुटाने में अग्रगामी रहे हैं।
१९२७ में जब महात्मा गांधी ने अहमदनगर जिले में स्वादी प्रचार के लिये रुपये एकत्रित करने के वास्ते दौरा किया था, तो उसकी आयोजना आप ने की थी।
१९३०, १६३२ के असहयोग आन्दोलन में भरपूर द्रव्य खुद दिया, 'और चन्दा जमा किया।
अहमदाबाद म्युनिसिपैलिटी के सदस्य १६१६ से रहे हैं, १६४०४१ में उसके प्रेसीडेण्ट निर्वाचित हुए । डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के प्रेसीडेण्ट १६३५ से १९३८ तक रहे। स्थानीय साप्ताहिक "देशबन्धु" के सम्पादक ५ बरस तक रहे । कांग्रेस के मुख-पत्र "संघ-शक्ति" के सम्पादकीय मण्डल के सदस्य रह चुके हैं। . १९३० से १९४२ तक जिला शहरी सेंट्रल कोआपरेटिव बैंक के
चेयरमैन रहे, और उसको आर्थिक संकटों से उभार कर प्रान्त के सफल बैंकों में पहुँचा दिया।