Book Title: Bhagwati Sutra Part 07
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 718
________________ ६९८ भगवती सूत्रे 1 करंमि संघयणे होज्जा' हे भदन्त ! स खलु विभङ्गज्ञानी प्रतिपन्नावधिज्ञानः कतमस्मिन् संहनने भवति ? भगवानाह - गोयमा । बहरोसमनाराय संघयणे होज्जा हे गौतम! स प्रतिपन्नावधिज्ञानः- वचऋपभनाराचसंहनने भवति, तस्य प्राप्तव्य केवलज्ञानत्वात्, केवलज्ञानमाप्तिश्च प्रथम संहनने एव संभवतीति भावः एवमग्रेऽपि वोध्यम् । गौतमः पृच्छति - ' से णं भंते ! कयरंमि संठाणे होज्जा ? ' हे भदन्त ! स खलु प्रतिपन्नावधिज्ञानः कतमस्मिन् संस्थाने भवति ?, है - जिस जीव के परिणाम अवस्थित अवस्थावाले हैं उसकी अपेक्षा तो अनाकार उपयोग में भी लब्धि का लाभ हो सकता है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( से णं भंते! करंमि संघणे होज्जा ) हे भदन्त ! वह प्रतिपन्न अवधिज्ञानवाला विभंगज्ञानी किस संहनन में होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( गोयमा ) हे गौतम ! ( वइरोस भनारायसंघयणे होज्जा) वह प्रतिपन्न अवधिज्ञान वाला विभंगज्ञानी वज्रऋषभनाराच संहनन में होता है । क्यों कि ऐसा जीव प्राप्तव्य केवलज्ञानवाला होता है और केवलज्ञान की प्राप्ति प्रथम संहनन में ही होती है इसलिये यहां ऐसा कहा है । इसी तरह से आगे भी जानना चाहिये । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( से णं भंते । कयरंमि ठाणे होज्जा ) हे भदन्त | वह प्रतिपन्न अवधिज्ञानवाला विभंगज्ञानी जीव किस संस्थान में होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( गोयमा) છે. જે જીવના પિરણામ અવસ્થિત અવસ્થાવાળા હાય છે, તેની અપેક્ષાએ તે અનાકાર ઉપયાગમાં પશુ લબ્ધિના લાભ સભવી શકે છે. गौतम स्वाभीना प्रश्न - ( से णं भंते ! कयर'मि संघयणे होज्जा १ ) डे ભદન્ત ! તે પ્રતિપન્ન અવધિજ્ઞાનવાળે વિભ’ગજ્ઞાની કયા સહુનનયુકત હોય છે ? महावीर अलुने। उत्तर- " गोयमा ! " हे गौतम ! ( वइरोसभनारायसंघयणे होज्जा ) ते वऋषभनाथ सडननवाणी होय छे, अरण येथे। જીવ પ્રાસબ્ય કેવળજ્ઞાનવાળા હાય છે, અને કેવળજ્ઞાનની પ્રાપ્તિ પ્રથમ સહનનમાં જ થાય છે, તેથી અહીં આ પ્રમાણે કહ્યુ છે. એજ પ્રમાણે આગળ પણ સમજવું. गीतभ स्वाभीना प्रश्न - ( से णं भते । कयर' मि संठाणे होज्जा १ ) डे ભદ્દન્ત ! તે પ્રતિપન્ન અવધિજ્ઞાનવાળા વિભ’ગન્નાની જીવ કેટલા સસ્થાન ( आर ) वाणी होय छे !

Loading...

Page Navigation
1 ... 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784