Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० १०११-१०३३]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
वधू को गृहागत देखने के लिये तीन उस्कण्ठित एवं लालायित थी। आखिर माता के अत्याग्रह से चन्द का विवाह २१ वर्ष की वय में श्रेमिकुलोत्पल शाह देवा की पुत्री मालती से होगया । जैसे चंद सब विद्याओं का निधान था वैसे मालती भी स्त्रियोचित सब कार्यों में प्रवीण थी। दोनों पति पत्नियों में परस्पर रूप एवं गुणों की अनुकूलता होने के कारण उनका दाम्पत्य जीवन बहुत ही प्रेम एवं शान्ति पूर्वक व्यतीत हो रहा था। चन्द अपने माता पिताओं की सेवा चाकरी विनय करने में अग्रेश्वर था वैसे मालती भी विनयशील लज्जाशील एवं गृहकार्य में कुशल थी। चंद और मालती के गार्हस्थ्य सुख के सामने स्वर्ग के अनुपम सुख भी नहीं के बराबर थे, ऐसा लिखना भी कोई अत्युक्तिपूर्ण न होगा।
मन्त्री सारङ्ग का घराना शुरु से ही जैनधर्मोपासक था। माता रत्नी नित्य नियम और षट्कर्म करने में सदैव तत्पर रहती थी। सारङ्ग के पिता अर्जुन ने भी दशपुर में एक मन्दिर बनवाया था। सारङ्ग ने तो अपने घर देरासर बनवा कर स्फटिक की प्रतिमा स्थापन करवाई थी। शत्रुञ्जय गिरनारादि तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाले थे। स्वधमी बन्धुओं को स्वामीवात्सल्य के साथ एक २ स्वर्ण मुद्रिका व बदिया वस्त्रों की प्रभावना दी। इस प्रकार अन्य बहुत से शुभकार्यों में खूब उदारवृत्ति से द्रव्य व्यय कर अनन्त पुण्योपार्जन किया।
सारङ्ग के बाद मन्त्री पद चंद को मिला। चंद अमात्यावस्था में चंद्रसेन के नाम से प्रसिद्ध हुए । जमाने की गति विधि को देख मन्त्री चन्द्रसेन दे अपने लघु भ्राताओं को व्यापार में जोड़ दिये जिससे अन्य भाई स्वरुचि के अनुकूल व्यापारिक क्षेत्र में लग गये । मन्त्री सारङ्ग का परिवार वंशावली रचयिताओं ने इस प्रकार लिखा है--
मन्त्री अर्जुन
सारंग
संगण
सामन्त
दलो पेथो
झंजो
.
गोपो
धनो होनो मेरो
राजसी
चदा सूजी गोरख अमर
लाला
( इन चारों का बहुन परिवार है)
धर्मसी नेतसी जीवण जोथो
मन्त्री चंद्रसेन जैसे पारिवारिक सुख से सम्पन्न थे वैसे लक्ष्मीदेवी के भी कृपा पात्र थे। चंद्रसेन ने भी शत्रुखयादि तीर्थों का संघ निकाल कर स्वधर्मी भाइयों को खूब उदार वृत्ति से प्रभावना दी। याचकों को भी पुष्कल (मन-इप्सित) द्रव्य प्रदान कर संतुष्ट किया जिससे आपकी सुयश ज्योत्स्ना चारों ओर छिटकने लगी।
एक समय आचार्यश्री ककसूरिजी महा० क्रमशः विहार करते हुए दशपुर में पधारे श्रीसंघ ने आपका शानदार स्वागत किया । मन्त्री चंद्रसेन ने नगर प्रवेश महोत्सव एवं प्रभावना में सवालक्ष द्रव्य व्यय किया । १३४०
मन्त्री अर्जुन का वंशवृक्ष
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