Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan

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Page 128
________________ भट्टारकों के प्रति उपेक्षित हो गया। 5. भट्टारक बनने के लिये किसी विद्वान् श्रावक का आगे नहीं आना भी एक प्रमुख कारण रहा। पड़ितों का सद्भाव एवं उनके द्वारा पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें, विधान आदि स्वयं करवाना है। भट्टारकों के अस्तित्व को भुलाने में पंडित-वर्ग का भी विशेष हाथ रहा है। दक्षिण-भारत में भट्टारक-गादियाँ उत्तर-भारत से दक्षिण-भारत की स्थिति एकदम भिन्न है। उत्तर भारत में भट्टारकों का नाम लेना भी नहीं रहा। वहीं दक्षिण भारत में वर्तमान में आठ भट्टारक-पीठ हैं, जहाँ भट्टारकगण पदासीन हैं और धार्मिक क्रियाओं को कराते रहते हैं। वे समाज में आते-जाते हैं, सम्मान प्राप्त करते हैं। बड़े-बड़े मठ हैं, जहाँ कितने ही व्यक्ति मठ की सेवा में लगे रहते हैं। गाड़ी-घोड़े हैं। दक्षिण के भट्टारक जब उत्तर भारत में आते हैं, तब समाज उनकी सेवा में लग जाता है। दक्षिण-भारत में वर्तमान में मूडबिद्री, श्रवणबेलगोला, हुमचा, कोल्हापुर, नांदनी जैसे कुछ भट्टारक-मठ हैं, जहाँ भट्टारकों की सारी धार्मिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विधियाँ चलती हैं। इन भट्टारक-पीठों का इतिहास निम्नप्रकार है - श्रवणबेलगोल भट्टारक-पीठ श्रवणबेलागोल 'श्रवण' अर्थात् 'श्रमण' और 'बेलगोल' (बेल+गोल) शब्दों की संधि से बना हैं 'श्रवण' अथवा 'श्रमण' का अर्थ है 'जैन-साधु' अथवा यह गोम्मटेश्वर जैन मूर्ति बेलगोल दो कन्नड शब्दों 'बेल' अर्थात् 'श्वेत' तथा 'गोल' अर्थात् सरोवर से बना है। दोनों पहाड़ियों अर्थात् 'विंध्यगिरि' तथा 'चन्द्रगिरि' के मध्य में यह सुन्दर 'कल्याणी सरोवर' निर्मित है। इस मूर्ति एवं 'कल्याण सरोवर' में सम्बन्ध जोड़कर इसप्रकार इस स्थान का नाम 'श्रवणबेलगोल' प्रसिद्ध हुआ है। वृद्धा द्वारा गुल्लकेय फल के खोल से भरे दूध द्वारा गोम्मटेश्वर मूर्ति का अभिषेक किये जाने के कारण भी इसका नाम 'श्रवणबेलगोल' पड़ा है। उत्तर-भारत के जैन इसे 'जैनबिद्री' भी कहते हैं। कर्नाटक के 'हासन' जिले में स्थित यह छोटा-सा सुन्दर नगर कर्नाटक की राजधानी 'बंगलौर' से लगभग 50 किलोमीटर दूर तथा बन्दरगाह मंगलौर से लगभग 250 किलोमीटर दूर है। सुन्दर पक्की सड़क द्वारा बसों अथवा कारों से यहाँ सुगमता से पहुँचा जा सकता है। जैन-मठ यह एक सुन्दर मन्दिर एवं श्रवणबेलगोल के मठाधीश पंडिताचार्य स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी का पूर्व निवास-स्थान है। मठ के बीच में खुला हुआ प्रांगण 00110 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ

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