Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥२९२॥
उद्देशक ५.
| ३ शतके ( चोथा उदेशकमां विकुर्वणा संबंधी हकीकत कही के अने पांचमा उद्देशकमां तेज हकिकतने विशेषताथी कहे छे.)
उद्देश:५ अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एग महं इत्थिरूवं वा जाव संदमाणि- २९२॥ यरूवं वा विउवित्ता ?, णो ति०, अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एग महं इत्थिरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउवित्तए, हंता पभू , अणगारे णं भंते! भावि. केवतियाई पभू इत्थिरूवाई बिकुग्वित्तए?, गोयमा ! से जहानामए जुबई जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेजा चकस्स वा नाभी अरगा उत्तासिया एवामेव अणगारेऽवि भावियप्पा वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणइ जाव पभू णं गोयमा! अणगारे णं भावियप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहहिं इत्थीरूवेहिं आइन वितिकिन्न जाब एसणंगोयमा! अण-18 गारस्स भावि. अयमेयारूपे विसए विसयमेत्ते बुच्चइ, नो चेव णं संपत्तीए विकविसु वा ३, एवं परिवाडीए नेयव्वं जाव संदमाणिया।
[प्र०] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार, बहारनां पुद्गलोने लीधा सिवाय एक मोटा स्त्रीरूपने यावन्-पालखी=मीयाना रूपने विकुर्ववा समर्थ छ ? [उ.] हे गौतम ! ए अर्थ समर्थ नर्थ. [प्र.] हे भगवन् ! मावितात्मा अनगार, बहारनां पुद्गलोने लईने | एक मोटा श्रीरूपने यावत्-पालखी मियाना रूपने विकुर्वधा समर्थ छ ? [उ०] हे गौतम ! हा, ते तेम करवा समर्थ छे. [प्र.] हे
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