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भगवान पार्श्वनाथ |
अनोखी बात सुनकर उससे पूछा - "तुम कौन हो, जो मुझ दुःखिनको अपनी स्वामिनी कहते हो ? भाई, मैं तो तुम्हें नहीं जानती हूं । " वह मातंग बोला- “ विद्युत्प्रभ नगर के राजा विद्युत्प्रभ और रानी विद्युल्लेखाका मैं बालदेव पुत्र हूं । एक दिन मैं अपनी स्त्री कनकमाल के साथ दक्षिणकी ओर क्रीड़ा करनेको जारहा था । मार्ग में कलिंगदेशके उपरांत श्री विध्यशैलकी रामगिरि शिषिरपर श्री वीर नामक मुनिराज विराजमान थे । ( 'हउंताए समउ दरि
दिसिहं रममाणु गयणुय लेगडं, अंधकलिंग हो अंतरिण, बिझय सेलु अग्गह ठियउं ॥ २ ॥ ) इसलिये मेरा विमान उनके ऊपर से नहीं जासका । ( मुणीसरु दिट्ठऊ तहोणाऊ चल्लह दिव्व विमाणु) मुझे बड़ा भारी क्रोष उत्पन्न हुआ क्योंकि मैंने समझ लिया कि इन्होंने ही मेरे विमानको रोका है । अतएव वीर मुनिको मैंने उपसर्ग करना प्रारंभ किया। (विकिउ उवसग्गु तासु ) परन्तु उनके पुण्यप्रभाव से मेरी सब विद्या नष्ट होगई । मैं भौंचक्का से रह गया | मुझे चेत हुआ । मैंने अनेक प्रकारसे उन मुनिवरकी स्तुति की और उपरांत उनसे विद्या सिद्ध होनेका निमित्त पूंछा । उन्होंने कहा कि चंपापुरके राजा दन्तिवाहनकी पद्मावती रानीको दुष्ट हाथी ले भागा था, सो वह दंतीपुरमें मालीके यहां रहती हैं । किन्तु मालिन उनको अपने घर से निकाल देगी और वह भीममसानमें पुत्र प्रसव करेगी । उस बालककी तू जब रक्षा करेगा और
१ - पुण्याश्रव कथाकोष पृ० २० इस ग्रंथ में अगाड़ी पद्मावतीका सहायक होना और हस्तिनापुरका स्मशान बताया गया है, जो इससे प्राचीन मुनि कणयामर विरचित 'करकंडु महाराय चरिय से बाधित है ।