Book Title: Bhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 282
________________ २६८] [ भगवान महावोरभेज दिया गया । तक्षशिलामें विद्याध्ययन करते वह अपनी गुरु. आनीकी विशेष सेवा सुशूपा किया करता था इस कारण गुरुके गृहसे उसे अधिकतर निमत्रण मिलते रहते थे। इस बातको और शिप्य सहन न कर सके। उन्होंने गुरु और इसके बीच कुसम्प लानेके प्रयत्न किये और वे सफल भी हुए । गुरु 'हिंसक' से रुष्ट होगये और उससे कहा कि मुझे गुरुदक्षिणा रूपमें एक हजार अंगुलिया मनुष्योंके सीधे हाथकी लाकर दो। वह समझते थे कि उससे यह कार्य नहीं होगा और इसपर उसे दण्ड दिया जासकेगा किंतु 'हिंसक गुरुकी आज्ञाको शिरोधार्य कर कौशलके जालिनी वनमें पहुच गया और वहासे जो यात्री निकलते, वह उनकी उंगलियां काट लेता और उन्हें सुखाकर उनकी माला बनाकर गलेमें पहिन लेता इसही कारण वह 'अंगुलिमाल' नामसे प्रकट होगया । जब उसकी उद्धतता ज्यादा बढ़ गई तो राजाने उसको पकडनेके लिये सेना भेजनेकी व्यवस्था की। यह समाचार जानकर उसकी मातांका हृदय थर्रा गया। वह ममताकी प्रेरी अपने पुत्रको समझानेके लिये निकल पड़ी। इस समय 'अंगुलिमाल' ने अपनी माताको आते देखा; परन्तु उसे तो अंगुलियोंसे मतलब था। उसने माताका भी ध्यान नहीं किया ! अगाडी चौद्धाचार्य कहते है कि म० बुद्धने इस दशाको जाना तो वे घटनास्थलपर पहुच गये । उनको आता देखकर ' अंगुलिमाल' ने अपनी माताको छोड दिया और उनके पीछे हो लिया परन्तु भागकर भी वह उनको नहीं पकड़ -सका । अन्तत. बुद्धके प्रभावसे उसने वह हिसाकर्म छोड़ दिया और वह बौद्ध होगया । बौद्ध भिक्षु होनेपर भी लोग उसको विशेष

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