Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Chandraraj Bhandari
Publisher: Mahavir Granth Prakashan Bhanpura

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Page 427
________________ ( ४६८ ) ने एक ही सिक्के के रुपयों से इतने छकड़े भर दिये की रीयां से लगा कर जोधपुर तक छकड़ो की कतार बंध गई । महाराजा साहव अतुल द्रव्य देख कर बहुत प्रसन्न और उनको सेठ की उपाधि से विभूषित किया और उनको इतना मान -मरतवा दिया जितना पूर्व किसी को भी जोधपुर राज्य में न दिया गया था । उस समय से ही इनका घर ढाई घरों मे गिना जाने लगा और रीयां गाँव अधिक प्रसिद्धि में आया । सेठ जीवणदास | सेठ जीवरणदास जी बड़े पराक्रमी पुरुष थे । उन्होंने जोधपुर राज्य मेवडी ख्याति प्राप्त की थी यही नहीं किन्तु उन्होंने अपना दवदवा पेशवा के राज्य मे भी जमाया। समस्त महाराष्ट्र और दूर २ तक इनका सिक्का जमा हुआ था, इनके अतुल धन, स्वतन्त्र और उदार विचार की प्रशंसा चहुँओर थी और उस समय वह Millioney क्रोड़पति कहे जाते थे । पेशवा के दरबार मे सेठ जीवनदासजी का बड़ा मान था उन्होंने पेशवाओ की उस नाजुक समय में धन से सहायता की थी जिस समय उनके Cheefs सरदार Tribute खिरज देने को इनकार हो गये थे, यदि सेठ जीवरणदास जी धन से सहायता न देते और फौज को इतमिनान न दिलाते तो उनकी राजधानी पर फौज का पूर्ण आधिपत्य हो जाता उस समय उनकी दुकान पूने मे थी, और पेशवा राज्य की सरहद्द में कई स्थानों में उनकी शाखाएं थी, एक शाखा राजपुताने के अन्तर्गत अजमेर में भी थी ।

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